Sunday 30 April 2017

भूलना

चलो कुछ सपने साथ देख आयें,
कुछ पल प्यार के जी आयें,
भर लूँ तुमको बाँहों में,
बंद कर लूँ ये पल निगाहों में,
प्रेम यूँ भी अढ़ाई अक्षर का होता हैं,
बह लेने दो उसे इन धमनियों में, रंग लेने दो,
इससे पहले कि यादें ये विलुप्त हो जायें स्मृति के किसी अंधेरे मे,
भूलना भी जानम बहुत लम्बा सा एक अंतराल होता है।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य 

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