Tuesday 18 April 2017

प्रार्थना

क्या मंदिर, मस्जिद, गिरजा जाऊँ
और आकर तुझको शीश झुकाऊँ ? 
अपनी प्रार्थना से तुझे रिझाऊँ, 
ये सारा जीवन यूँ ही खो जाऊँ
नही मंज़ूर मुझे, मानवता के उत्थान को
मिट जाऊँ, कुछ कर पाऊँ जी जान से,
बस यही वंदना मेरी,
जीवन आराधना मेरी।

©मधुमिता


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