Thursday 25 August 2016

सुकून तुझको मिल जाये 



देखती हूँ तुझको करवटें बदलते हुए,
खुली आँखों को तेरी नींद को तङपते हुए,
रातों को सुबह में बदलते हुए,
साँसों को तेरी उलझते हुए ।


देखा है तुझे इधर-उधर, भटकते, 
अनजानी राहों पर बस यूँ ही चलते,
अपने ख्यालों में इस कदर खोते
कि पहचानी गलियाँ भी भूलते।


कहाँ खो गई ना जाने तेरी मुस्कान!
चेहरे पर झलकती जीवन भर की थकान,
माथे पर अनगिनत शिकन,
मानों दिल से अलग हो गयी हो धङकन।


हर पल मचलता वो दिल कहाँ है? 
हर कुछ कर जाने को वो जोश कहाँ है?
ढूढ़ कर ले आऊँ तुझे, तू बता कहाँ है
तू? मुझे बता दे, खुद को छोङ आया कहाँ है?


तेरी हँसी बिना ये जीवन वीरान है,
ढूढ़ रही हर घङी तेरी मुस्कान है,
तू मेरा गौरव और मान है,
तू खुद ही तो खुद की शान है।


कहाँ खो गयी ज़िन्दगी तेरी,
क्यों उलझ कर रह गयी तकदीर तेरी?
क्यों खुशियों ने तुझसे नज़रें फेरी?
काश मै बन पाती दवा तेरी!


कैसी ये तङप और घबराहट है?
हर वक्त क्यों छटपटाहट है!
कौन सा वो डर है जो डरा रहा है!
क्यों यूँ तू अंदर ही अंदर तिलमिला रहा है?


रुक जा ज़रा दो घङी ढंग से साँस तो ले,
खून को बदन में दौङ जाने तो दे,
होंठों पर एक मुस्कान खेलने तो दे,
आँखें बंद कर, नींद को आँखों में उमङ  आने को दे।


बस अब! कोई तकलीफ ना तुझ तक आये,
तुझपर ना ज़रा भी आँच आये,
काश कुछ ऐसा हो जाये,
कि सुकून तुझको मिल जाये....

© मधुमिता

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