Tuesday 16 August 2016

प्यार के निशान 




ये मखमली सा गुलाब का फूल,
नाज़ुक सा,अपने अंदर
मोती को छुपाये,
स्वर्णिम सी आभा लिये
इतराते हुये,
क्या इसे पता है कि इसका 
मखमल तुमसे ही है?
सारी नज़ाकत तुम्हारी,
गुलाबी से आवरण में 
तुम मेरे अंदर समाई हुई,
रेशमी,झीनी चादर 
में मेरे दिल को समेटे हुये,
अपने स्पन्दनों से
मेरे हृदय को रोज़ धङकाती तुम। 



ये हरे-हरे पत्ते,
चमचमाते, झिलमिलाते 
से,सूरज की किरणों तले,
क्या इन्हे पता है
कि तुम भी इनकी तरह,
हरी-भरी सी,चमकती सी,
मेरे दिल के अंदर नर्तन 
करती हो,गुनगुनाती हो?
लहलहाती हो हरे धान सी,
मेरे अंतर्मन में हरियाली करती,
खोजती मुझको,
मेरे ही छाती के अंदर,
अंदर तक अपनी जङें फैलाकर,
कोने-कोने,टटोलती तुम।


प्यार ही प्यार बिखरा है चारों ओर,
गाती हुई खामोशी पसरी है हर ओर,
बसंत ने अपने रंग बिखेर दिये हैं 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिये,
तितलियाँ रंग लिये मंडरा रही हैं,
रंगने तुम्हारे हसीन सपने,
सपने जो अंतहीन हैं, 
बिल्कुल हमारे प्रेम की तरह,
अनंत और हर पल जीवंत, 
इस नीले आसमान 
और रंगीन ज़मीन 
पर हर तरफ है हमारा नाम,
हमारे प्यार से ढका हुआ है
ये धरती और आकाश ।


एक दूसरे की बाँहों में, 
प्रेम आलिंगन में बद्ध हम,
तुम्हारा चेहरा मेरे सीने मेें 
छुपा हुआ,
मेरी बाहें तुम्हे समेटे हुए,
इस रेतीली,सुनहरी सी 
धरती पर लेट ,
मौसमों का आना-जाना 
देखते,इंतज़ार करना,
हर पल,हर क्षण के
बदलने का, कब फूल खिलेंगे
या पत्ते झङेंगे शाखों और लताओं से,
सर्द सी अलसाई दुपहरी में 
पतझङ को खेल करते देखा करते हम और तुम।  


खामोश सा मंज़र,
खामोश खङे दरख़्त,
खामोशी से लिपटी लतायें,
खामोश समन्दर,
चरचराती, फरफराती लपटों 
के साथ लहलहाती लाल आग, 
चटकती लकड़ियाँ,उनमें से 
निकलता,गहरा खामोश धुआँ,
सर्र-सर्र सरकती हवा
टकरा जाती खिङकी के शीशों से, 
भरभराकर खामोशी को चीरती 
हुई बर्फीली आवाज़ ,
अपने प्यार की धुन में बेसुध
खामोश बैठे हम। 
  

हमें यहीं बने रहना है,
क्योंकि ये हवा,ये मौसम,
पतझङ और बसंत, 
सब हमें यहीं ढूढ़ेगे,
आवाज़ लगायेंगे हमें,
पुकारेंगे हमारा नाम लेकर,
यही हमारा पता है,
हर पत्ते,हर फूल पे लिखा है
नाम मेरा और तुम्हारा, 
ये ज़मीं,आसमां,
जङें,पेङ,हवा,
आग,धङकन,स्पन्दन,
सब साक्ष्य हैं 
मेरे ,तुम्हारे प्यार के।


यही हमारा नीङ है,
हर ओर लहरों की भीङ है,
हर पतझङ के पत्ते पर नाम हमारा है,
हर हवा के झोंके में स्वर हमारा है,
बसंत का राग हम ही हैं, 
सुर्ख़ गर्म आग भी हम हैं,    
मेरे सीने में घर बनाये हुए तुम,
मै तुम्हारे सीने की गरमाईश में गुम,
मखमली तुम्हारे हाथों को थामे
समय की राह पर चलते,
तुम्हारे संग गाते,गुनगुनाते,
फूल सी तुमको बाँहों में उठाकर,
हम दो,शांत आग को दिल में बसाते,
अजेय प्यार के निशान बनाते।।

©मधुमिता

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