Thursday 18 August 2016

ओ हरजाई 



तू कहाँ छुप गया है,
ना कोई खबर ना पता है,
ज़िन्दगी भी वहीं ठहर गई ,
मेरी दुनिया भी तभी सिमटकर रह गई,
लफ़्ज़ ठिठुर रहे हैं,
अहसास सर्द पङे हैं, 
जज़्बातों में जमी है बर्फ की चादर,
चाहत की आग सुलग रही पर दिल के अंदर।


अधर अभी भी तपते हैं,
तेरे अधरों को महसूस करते हैं,
आँखों में आ जाती नमी है,
सब कुछ तो है मगर,एक तेरी कमी है,
नज़रों को तेरे साये का नज़र आना भी बहुत है,
तू जो दिख जाये तो 'उसकी' रहमत है,
तेरे सीने में छुप जाने को जी चाहता है,
तुझे अंग लगाने को दिल करता है।


तेरे सुदृढ़ से बाहुपाश, 
घेरकर मुझको आसपास,
मुझे अपने में समा लेना तेरा,
तेरी धङकनों में समा जाना मेरा
और मेरी साँसों का,
एक जुगलबन्दी मानों धङकनों और श्वासों का,
एक अदृश्य धागे से बंधे थे हम,
जिसे चटकाकर,तोङ गये एक दिन तुम।


आज भी उसी दुनिया में रहती  हूँ,
तेरी साँसों को ही जीती हूँ,
धङकनों में बसी हैं धङकनें तुम्हारी,
तन-मन में महकती बस खुश्बू तुम्हारी
जो महका सी जाती है यादों को,
ज़रा बहका भी जाती मेरे दिल को,
हर पल तेरी यादों को है समर्पित,
खुद को तो तुझे कभी का कर दिया अर्पित।




 अब ये दिल मेरा मानता ही नही,
मेरी अब सुनना ये चाहता भी नही,
कब तक इसे मनाऊँगी, 
झूठे दिलासों से बहलाऊँगी,
मुझसे तो ये रूठकर है बैठा,
हर पल तेरा नाम है रटता, 
किसी दिन तुझे ढूढ़ने निकल ना जाये,
वापस फिर मेरे हाथ ना आये। 

  

मेरी नसों में बहते रुधिर 
की हर बूंद है अधिर, 
समाकर तेरा नाम अपने मे,  
जो गूंज उठती हर स्पन्दन में,
अब तो आँखें भी तेरी तस्वीर दिखाती है,
पलकें किसी तरह तुझे अपने में छुपाती हैं,
जो दुनिया ने देख सुन लिया नाम तेरा,तो होगी रुसवाई,
आजा अब तो साँसें तेरे लिए ही अटकी हैं,ओ हरजाई ।। 

©मधुमिता

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