Monday 22 August 2016

बाॅस की बीवी 


जया और निम्मी मुझे बाहर तक छोङने आई थीं । गला रुंधा जा रहा था, एक अजीब से दर्द से मानों घुट रहा था। आँखें छलछला रही थीं। "मैम आप आओगे ना कल" निम्मी पूछ रही थी।जया मेरा हाथ पकङ कर कह रही थी," प्लीज़ आ जाना।तुम नही रहोगी तो मै अकेली हो जाऊँगी"। मेरे पास कोई जवाब ना था। लिफ्ट आई और मै जल्दी से अंदर घुस गयी। जया और  निम्मी हाथ हिलाकर कर बाय कर रही थीं और लिफ्ट के दरवाज़े बंद हो गये। लिफ्ट धङधङाती नीचे चल दी।

खुद को अकेला पाकर आँखें भी बरस गयीं । हथेली  के दोनों तरफ  से आँख और नाक से निकल पङी धाराओं को पोंछने लगी। लिफ्ट जल्दी ही, हवा के वेग सी, नीचे पहुँच गयी और मै बाहर।

जया और निम्मी मेरी सहकर्मी थीं ,मेरे पति अतुल और उनके पार्टनर श्यामल की कम्पनी में। वही कम्पनी जिसे मैने कुछ नही से, बहुत कुछ बनते हुये देखा था। तब से साथ थी मै जब गिने चुने एमपलाॅईस थें और आज इतना बङा ताम झाम,सैंकड़ों लोग काम करते  हुए । तब जब खुद पानी भरकर पीते हुये भी मुझे कभी दिक्कत नही हुई और ना ही सहयोगियों के लिए चाय-पानी का सामान खरीदकर लाते हुए कोई शर्मिंदगी महसूस हुई।

कभी डिजाइनिंग करवाना,कभी प्रोडक्ट स्टोरीज़ लिखना, कभी डिसपैचेस का रिकॉर्ड तो कभी सेल्स फिगर्स का हिसाब । लोगों को इंटरव्यू करना, नये लोगों को काम सिखाना....यहाँ तक की बोतलें, डब्बे गिनवाना, प्रिन्टस चेक करना, प्रूफ़ रीड करना, सब कुछ तो करती थी।

उसके ऊपर से अतुल की झल्लाहट सहना, उनके गुस्से का शिकार होना। कोई काम नही होता था समय पर तो सारा गुस्सा मुझपर उतरता। किसी बाहर वाले की गलती की सज़ा भी मुझे ही भुगतनी पङती कितनी बारी। कई बार तो सहयोगियों को बचाने की खातिर खुद सामने होकर अपने आप ही झेल लेती थी उनका गुस्सा । मेरी खुशमिजाज़ी की वजह से सहयोगी भी खुश रहते और काम भी खुशी से करतें,फिर भले ही कितनी ही देर हो जाती । सब कुछ अच्छा चल रहा था ।

फिर धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा, ज़्यादा लोग जुङने लगे और बढ़ने लगीं कोई लोगों की असुरक्षा की भावनाएँ । कल तक जो सारे काम मै कर रही थी, दस लोगों का काम कर रही थी ,मेहनत कर रही थी, तब किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती थी, लेकिन अब कुछ लोगों को आपत्ति होने लगी थी । मेरा कुछ भी बोलना या कहना उनके अधिकारों का हनन नज़र आने लगा । एक सहकर्मी से मै अब ' बाॅस की बीवी ' बन गई थी ।

हद तो तब हो गई जब एक दिन मुझे अंदर बुलाया गया- अंदर श्यामल और अतुल दोनों ही थे । फिर  एकदम से श्यामल शुरू हो गये - आपको ये करने की क्या ज़रूरत है, वो करने की क्या ज़रूरत है. . और अंत में मुझे तरीके से मेरी हदें और अधिकार बता दिये गये । मुझे एक शब्द भी बोलने नही दिया गया । मै अतुल की तरफ देख रही थी । मगर उन्होंने चुप्पी साध रखी थी । मेरी तरफ देखा भी नही और ना ही कुछ भी बोलें -ना ही बाॅस की तरह, ना ही सहकर्मी की तरह । मै चुपचाप उठी और बाहर आ गई ।

भोजन का समय था । सब लंच करने गये थे । कुछ ही लोग थे बाहर । मैने अपना लैपटॉप बंद किया, अपना पर्स संभाला, सारे दराजों को बंद कर चाभी निम्मी को पकङाकर कहा कि अंदर बता देना मै घर चली गई । शायद मेरी नज़रों ने बहुत कुछ बयान कर दिया था इसलिये निम्मी और जया परेशान हो उठी थीं और मेरे पीछे-पीछे आ गईं थीं ।

मै चलती ही जा रही थी और खुद से पूछ रही थी - " क्या ये कम्पनी मेरी नही थी? क्या इसको बनाने में मेरा कोई योगदान नहीं है?"
"क्या उनकी असुरक्षा की भावना उनको डरा  रही थी? या फिर मेरी मशहूरी, मेरी सफलता, काम करने का तरीका और लोगों के बीच मेरी ख्याति ने उनको हिला कर रख दिया था? "

और अतुल वो तो कुछ भी नहीं बोले थें मेरी तरफ से -ना बाॅस की तरह, ना ही किसी सहकर्मी की तरह । उनका व्यवहार तो बिल्कुल ही असहनीय था ।क्या वे भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं या फिर इसलिए कुछ नही बोलें क्योंकि मै उनकी पत्नी थी!

अचानक मेरी तंद्रा टूटी । मेरी बिल्डिंग के गार्ड भैया मुझे आया हुआ कुरियर देने को आवाज़ लगा रहे थे । मैने अचकचाकर उनसे कुरियर लिया और धन्यवाद कहा ।

पता नही कब और कैसे चलते-चलते मै अपनी बिल्डिंग तक आ गई थी । पसीने से तर बतर । गला भी सूख रहा था । आँखें छलछला रही थीं । तभी सामने दो मार्ग नज़र आये - एक जो अतुल और श्यामल की ओर जाता था और दूसरा जो पता नही कहाँ ले जाने वाला था।

तभी मैने अपने लिए दूसरा रास्ता चुन लिया ।

मंज़ूर था मुझे नयी राह पर अकेले चलना, नही मंज़ूर था मुझे ' बस ' " बाॅस की बीवी" बनना ।

ऐक्सेस कार्ड से गेट खोला मैने । सामने लिफ्ट खङी थी । आत्मविश्वास से भरे कदम मैने अंदर रखे, नंबर दबाया । लिफ्ट धङधङाती हुई ऊपर चल दी।

© मधुमिता 

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