रात
रात को देखो तो ज़रा
कैसे खो सी गयी है !
तुम्हारे इर्द गिर्द लिपट,
रोशनी में तुम्हारी
सराबोर हो,
गुम हो रही है
तुम्हारी आँखों में,
इन दो नयनों के काजल मे,
झुकी पलकों के पीछे
चुपके से छिपकर ,
एक टक तुमको
बस निहारती है,
चाहती है तुमसे बतियाना,
खूब हँसना
और खिलखिलाना,
पर डरती है
तुम्हे डराने से,
इसीलिये बस घेरे रहती है,
पूरे पहर जाग जागकर,
फिर भोर तले
गुम हो जाने को,
वापिस से फिर
एक तिमिर में,
तुम मे ही खो जाने को ..!
©®मधुमिता
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