Sunday, 31 December 2017

ऐ 2017, मेरे साथ चलने का शुक्रिया,

मेरा हाथ पकड़ साथ देने का शुक्रिया,

छूटने वाला है साथ मगर,

बस थोड़ी ही रह गयी है डगर,

365 दिनों तलक साथ निभाने का शुक्रिया!

©®मधुमिता

Saturday, 30 December 2017

जज़्बात...




कोहरे की चादर के पीछे छिपा ये अलसाया सूरज

और रज़ाई के अंदर दुबके,अलसाये से तुम,

उठो उठो की मेरी पुकार,

रुको, रुको कहता तुम्हारा इन्कार,

प्याली में ठंडी होती चाय

और बर्फ पड़ रहे मेरे जज़्बात,

दोनों में ज़्यादा फ़र्क तो नही!

हाँ चाय की प्याली ज़रूर दुबारा गर्म हो जाती है

उस धात के चौरस डिब्बे मे 

बिजली की छोटी छोटी चुम्बकनुमा तरंगों से,

और रज़ाई के लिहाफ़ के अंदर छिप जाते हैं 

एक और सुबह का इंतज़ार करते,

मेरे जज़्बात!

©®मधुमिता

Sunday, 24 December 2017


शब्दों का स्पन्दन ...



लिखती हूँ पातियाँ कई
कविता करती हूँ हर दिन नई,
शब्दों को बुनती हूँ,
कुछ राग गूंथती हूँ,
गीत गुनगुनाती हूँ,
तुझको बुलाती हूँ,
साँझ- सवेरे,
इन अधरों पर मेरे,
नाम तेरा ही सजा रखा है,
वचनों को कुछ संजो रखा है, 
वादियों में तुझे ढूंढ़ती ,
तेरी खुशबू हवाओं में खोजती,
एक आस है,
निश्चय है, विश्वास है,
कि मेरी खोई सी आवाज़,
ये सुगम शब्दों का साज़,
तुझ तक तो पहुँचेगी कभी,
ज़रूर पा जाएँगीं तुझको कहीं,
खींच लायेगी मेरे शब्दों की डोर
तुमको इक दिन मेरी ओर,
मेरी आवाज़ हो,ना हो सही,
इन शब्दों का स्पन्दन ही सही !

©®मधुमिता

Thursday, 14 December 2017

कुछ आँसू 



कुछ आँसू ढुलक गये मुस्कुराते हुये,
एक मुस्कान तैर गयी रोते हुये,
खारी सी हर एक बूंद 
तेरी चटपटी यादोँ संग,
रस रंजित कर गयी 
मेरी सुन्न पड़ी ज़ुबान को,
सुप्त पड़े हृदय को
जगा गयी आमोद से,
सुखद से एक स्पर्श से
आह्लादित कर गयी 
हर रोम-रोम को,
जीवित कर गयी 
हर भाव, अनुराग को,
कर गये सचेतन
एक निर्जीव, निष्प्राण को,
ये कुछ आँसू जो ढुलक गये मुस्कुराते हुये।।

©®मधुमिता

Wednesday, 6 December 2017

चंदा रे...


चाहे चमचम चमको,
कितना भी दमको,
मुस्कुरा लो ,
कितना भी इतरा लो,
आज ना मुझ तक पहुँच पाओगे,
देखो रस्सियाँ हैं, फंस कर गिर जाओगे,
चलो जाओ अब ना करो बदमाशी,
करो ना यूँ तुम गुस्ताख़ी,
करो जाकर बादलों संग अठखेली,
सितारों के संग करो आँखमिचौली,
चलो जाओ अब तुम घर अपने,
छोड़ो मेरा आंगन, लेने दो मुझको मीठे सपने ।

©®मधुमिता

आस..




अदृश्य में तुझे तलाशती हूँ ,
तूझे ढूंढ़ने को अंधेरे बुहारती हूँ,
हवा के बोसों मे तेरे लबों की तपिश है,
सितारों के पीछे से झाँकतीं हुई तेरी नज़रे हैं।

पीले पन्नों में ज़ब्त तेरी यादों को सहलाती हूँ,
दिल में बसी तेरी सूरत को निहारती हूँ,
रोम रोम में बसी तेरी ही निशानियाँ हैं,
नसों में दौड़ती तेरे यादों की रानाईयाँ हैं।

निस्तब्ध में तेरे कदमों की आहट सुनती हूँ,
परदों के पीछे की हलचल में तूझे खोजती हूँ,
मेरे अस्तित्व के हर पोर पोर में तू है,
मेरे जीने का मकसद ही तू है।

इन फूलों और पत्तों में भी तुझे पाती हूँ,
नदियों के कलरव के साथ तेरे गीत गुनगुनाती हूँ,
इन नज़रों को बस तेरे छब की प्यास है,
इन साँसों को अब सिर्फ़ तेरे मिलने की आस है।।

©®मधुमिता
 

Friday, 1 December 2017

उम्मीद...


सूखे हुये पत्तों 
और इस सन्नाटे में
सुस्ता रही है एक उम्र,
 साथ है मेरी तन्हाई,
ठूंठों को सहलाती
जिला जाती कुछ साँसें,
चंद पन्नों में दर्ज़ 
कुछ मीठे से अल्फाज़
और ख़्वाबों से कुछ
यादगार लम्हात,
चाय के उस प्याले में
अभी तलक नक्श हैं
सुर्ख़ से दो लब,
जो लबों को मेरे छूकर
अहसास करा जाते हैं 
तेरी मौजूदगी का,
तुझे छूकर आती 
एक ताज़ी हवा का झोंका,
उम्मीदों से भर जाती है मुझे
और मेरी तन्हाई को।। 

©®मधुमिता

Wednesday, 29 November 2017

दुनिया का बाज़ार 





सुनहरी धूप और दुनिया का बाज़ार ,
सुनहरे जामो में कंक्रीट के अंबार,
कुछ घर और कुछ मकान,
कुछ एक सपनों की दुकान,
रिश्तों की ढेरीयाँ हैं,
मृषा की फेरीयाँ हैं,
कुछ सुख ,
अनगिनत दुःख,
कुछ नाते बिखरे से,
कुछ सम्बन्ध उखड़े से,
थोड़ी भीड़ है और थोड़ी तन्हाई,
मुहब्बत भी है देखो और है रुसवाई,
कुछ कहानियाँ हैं बनती हुईं
और कई बिगड़ती हुईं,
मुस्कुराते पल हैं,
नफरत भरे दिल भी हैं,
कटु सत्य भी,
मीठे मिथ्य भी,
रोशनी का यहाँ परदा है,
छुपा सा, कुछ अलहदा है,
आँख खोल, बिन लो और कर लो व्यापार,
सुनहरी धूप में सजा है दुनिया का बाज़ार।।

©®मधुमिता

 

Wednesday, 15 November 2017

मुहब्बत का सलीका 



सब कुछ भूलना ही शायद 
तुझे पाने का बेहतरीन तरीका है।

महसूस करने को तुझे
बस जी भर कर रो लेना है।

तेरी खुशबू है हवाओं में
इन हवाओं को बस थामना है।

तू यहीं है आसपास मेरे
तेरे अक्स को सीने में छिपा लेना है।

बार-हा लोग पूछे गर
तेरा नाम ज़ुबाँ पर ना लाना है।

ग़ैर मौजूदगी मे तेरी 
यादों से तेरे लिपट जाना है।

खुद को यूं खोकर भी
यादों मे तेरे बसना है।  

मै को मिटाकर
तुझ मे ही सिमटना है।
मुहब्बत से आगे निकल जाना ही शायद
मुहब्बत निभाने का सलीका है।


 ©®मधुमिता

Sunday, 12 November 2017

निस्तब्ध


बेजान सी,
अंजान सी,
सुधबुध खोई,
ना अपना, ना पराया कोई,
अदृश्य सी शांति है,
जीवन की भ्रांति है,
ना संचार,ना चाल,
थम गया मानो समय और काल,
अधखुली पलकों से झांकते कुछ पुराने दिन,
बंजर, सूखे से, खुशियों बिन,
दरस की प्यासी उस अनंत की,
सांसें डोर खींचती अंत की,
कुछ ढूंढ़ती,
कुछ खोजती,
आकुल
और व्याकुल,
कुछ छोड़ती सी,
सब कु खोती सी,
नि:शब्द,
निश्चेष्ट और निस्तब्ध।।


©®मधुमिता

Thursday, 26 October 2017

नारी



चंचल हूँ और स्थिर भी,
शांत पर अस्थिर भी,
अव्यस्त फिर भी निरंतर व्यस्त हूँ,
निर्भीक फिर भी हर पल त्रस्त हूँ,
विनीत और उद्धत भी,
परतंत्र पर स्वतंत्र भी,
संक्षेप हूँ, विस्तार हूँ,
सविकार और निर्विकार हूँ,
निर्बल हूँ ,
फिर भी सबल हूँ,
अपवित्र और पवित्र भी,
प्रलय और सृष्टि भी,
बंधन हूँ, मुक्ति भी,
यथार्थ और कल्पित भी,
कल हूँ, आज हूँ,
दिन हूँ, रात हूँ,
गगन भी मै, 
पृथ्वी भी मै, 
मै लघु हूँ,
मै गुरु हूँ,
गद्य मे मै, 
पद्य मे मै,
श्यामा हूँ,
दुर्गा हूँ,
मै आदि हूँ , 
मै ही अंत हूँ,
तृप्ति और तृष्णा हूँ,
सत्य और मृगतृष्णा भी,
खाली सी पर भरी हूँ मै,
हाँ! नारी हूँ मै ।।

©®मधुमिता




Saturday, 16 September 2017

तार-तार


आज फिर दिल में कुछ चटक गया,
किसी को कुछ खटक गया,
कोई रिश्ता हुआ तार-तार ,
दोस्ती रोई ज़ार-ज़ार,
बेहिसाब दर्द है,
जज़्बात मानो सर्द हैं,
मुहब्बत है सिसक रही,
भरोसे की डोर फिसल रही,
आँसू कमबख़्त बरस रहे,
ज़ख़्म दिल के हाय, फिर रिस रहे !!

©®मधुमिता

Sunday, 10 September 2017

नामालूम 



ख़ामोशी है,
सन्नाटे का चीत्कार भी,
सितारे हैं,
घना अंधकार भी,
स्याह है
और स्याही भी ,
सुर्ख़ लब हैं,
लहु का लाल भी,
उल्टे लटके चमगादड़ हैं,
रंगबिरंगे मोर भी,
अनंत अथाह सागर है, 
अथाह अनंत अंतरिक्ष भी, 
कोटी कोटी नक्षत्र है,
सैकड़ो आकाश गंगायें भी, 
उल्कापात है,
झंझावात भी ,
अनर्गल सोच हैं,
आशंकाएं भी ,
भय है
और संत्रास भी,
उस अदृष्ट का,
अगोचर, अप्रत्यक्ष का,
एक अज्ञात, अपरिचित सा ये जहाँ,
भटक रही मै, नामालूम कहाँ ।।

©®मधुमिता

Wednesday, 30 August 2017

यकीन..


कभी आह भरती हूँ,
कभी मुस्कुराती हूँ,
कभी अश्क बह निकलते हैं,
यादें कभी नश्तर चुभोते हैं,
क्यों अकेली हूँ मै इतनी?
एक एक पल क्यों है एक उम्र जितनी?
बैठी हूँ बुत बनकर दरवाज़े पे,
अकेली, निस्तब्ध अंधेरे में,
आतुर हूँ दो लफ़्ज़ तेरे सुनने को,
तेरे आवाज़ की मिसरी घोलने को,
तेरे आने की उम्मीद नही है लेकिन,
आयेगा तू कभी तो, है अजीब सा ये यकीन;
तूने तो चुन ली थी अपनी अलग एक राह,
बदले मे दे गया बेअंत दर्द और आह,
दिल ने मेरे चाहा तुझको,
हर पल पूजा भी तुझको,
पर ना तू आया, ना तेरी परछाई,
शुक्र है दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती यादें मगर तेरी आईं,
कौन अब संभालेगा मुझको? कौन खुशियाँ दे जायेगा?
कौन पोंछेगा आँसू? खोई मुस्कान कौन ले आयेगा?
एक बार तो आ ज़रा, बाँहों मे मुझको थाम ले,
यकीन कर लूँ मुहब्बत पर, बेशक फिर तू अपनी राह ले।।
 
©®मधुमिता



Saturday, 26 August 2017

अपनी राह


क्यों सुनूँ मै सबकी?
तेरी, इसकी और उसकी,
मुँह बंद कर चलती जाती हूँ,
काम सबके करती जाती हूँ,
फिर भी जो बोली मै कुछ कभी,
भृकुटी सबकी तन जाती हैं तभी,
बस दोष और लानतें हैं मेरे हिस्से,
गीले, आर्द्र, दर्द भरे कुछ किस्से, 
छोड़ो मुझको सब, मत अहसान करो,
क्या हासिल, जब मेरा तुम ना मान करो,
संभालो अपनी दुनिया, संसार,
थामो अपनी चाभियाँ, अपना घर- द्वार, 
बहुत लुटा चुकी निरर्थक ही अपना प्यार,
छोड़ सब, मै चली अब इन सबके पार,
रोक नही पायेंगे मुझको कोई आँसू, ना कोई आह, 
खोज ली है कदमों ने मेरी अब खुद अपनी राह।

©®मधुमिता

Thursday, 24 August 2017

तो...


क्या रह गया है बाकी अब?
अब क्यों कुछ कहना है बताओ तो!
दूरियाँ बहुत हैं, नही मिट सकती अब।

कहो तो,क्या कहोगे तुम!
गर कह भी लोगे तो,
क्या कर लोगे तुम!

सुन चुकी हूँ बहुत तुमको,
क्या अब बदलेगा बताओ तो!
नही, अब नही सुनूँगी तुमको।

अब नही सुनती मै तुमको,
सुनती जो तुम मेरे होते तो,
मैने तो कब का छोड़ दिया तुमको।

सब बदल चुका है देखो,
दिल भी अब नही धड़कता तो
आसपास होते हो जब तुम देखो।

निज राह चुनो, आगे बढ़ो,
पीछे अब नही देखो तो,
जीवन की नयी तर्ज़ पर जीयो और आगे बढ़ो।

©®मधुमिता

Monday, 21 August 2017

एहतराम



बताओ तो कि तुम कौन हो?
हो तो तुम मेरे ही अपने,
अपने जो कभी बिछड़ गयें हो,
हो जैसे रूठे से सपने।

सपने मौन हैं,
हैं चंचल और विस्मित, 
विस्मित से ताक रहे हैं,
हैं विह्वल कुछ, कुछ चकित।

चकित हैं आवेश,
आवेश में उमड़े अनुराग,
अनुराग और अभिलाषा हैं अशेष,
अशेष रंग बिरंगे राग।

राग द्वेष सब व्यर्थ है,
है ये प्रेम मार्ग की बाधायें,
बाधायें जो निरर्थक है,
है पर देती ये मोड़ दिशायें।

दिशायें कहीं तो हैं मिलती,
मिलती तब खुशियाँ तमाम,
तमाम ज़िन्दगी जिसकी आरज़ू करती,
करती उस प्यार का एहतराम।


©®मधुमिता

अंग्रेज़ी कविता की विधा लूप पोयट्री पर आधारित

Wednesday, 16 August 2017

गर मै....


गर मै हवा होती,
चहुँ ओर मै बहती रहती, 
कभी अलसाई सी,
कभी पगलाई सी,
तुम चक्रवात से पीछे आते,
मुझको ख़ुद मे समाते,
अल्हड़,
मदमस्त।

गर मै होती कोई पर्वत,
ऊँची, आसमान तक,
शुभ्र श्वेत सी,
थोड़ी कठोर सी,
तुम बादल बन मुझे घेर जाते,
प्रेम-प्यार से मुझको सहलाते,
विस्तृत, 
असीम।

गर मै होती फूल कोई,
छुई मुई और इतराई, 
शर्मीली सी,
नाज़ुक सी,
तुम भौंरा बन आते,
इर्द-गिर्द मेरे मंडराते,
दीवाने,
मस्ताने।

गर मै होती जो धरती,
बंजर, बेजान, टूटी फूटी,
रेगिस्तान सी,
रूक्ष, शुष्क सी,
तुम बारिश बन आते,
ज़ख़्मों पर मेरे मरहम लगाते,
प्रबल,
अविरल।

गर मै चंदा होती,
सितारों के बीच जगमग करती,
सुहागन की बिंदिया सी,
स्याह आसमाँ के माथे पर दमकती सी,
तुम तब मेरे सूरज बनते,
मुझे तपाते और चमकाते,
रोशन,
प्रज्वलित ।।

©®मधुमिता

Thursday, 10 August 2017


शायर से मुहब्बत 


कभी किसी शायर के मोह मे मत पड़ना,
कभी दिल ना लगाना,
ये ढाल बन दिल में पनाह देते हैं,
कभी कोई भेस बदल, कई स्वांग रचते हैं,
कभी खुद में समेट ले चलते हैं दूर देस को,
दिल के राज़ सारे बता डालेंगे सब तुमको,
खालीपन सारा तुम्हारा भर जायेंगे,
पर तुमको ही तुमसे छीन ले जायेंगे।

हर किस्सा उनका,
हर लफ़्ज़ उनका,
मानो कोई माया जाल हो,
जिसमे फिरते तुम बेहाल हो,
हर अंतरे में शामिल एक सुंदर मुखड़ा,
मुखड़ों में छुपाये धरती,सूरज, तो कभी चाँद का टुकड़ा,
कभी दोज़ख़, कभी जन्नत, 
तो कभी ले आये पूरी कायनात। 

दीवाने ये,
मचलते परवाने ये,
तड़पते,
बहकते, 
कुछ टूटे से,
कहीं छूटे से,
मदहोश और बेख़बर,
लफ़्ज़ों के ये जादूगर। 

कभी किसी शायर से ना करना मुहब्बत, 
अपनी आँखों में ना बसाना उनकी सूरत,
बन जाओगे फिर हिस्सा उनके सुख का,
कभी अनंत दुख का,
मिलेगी फिर ग़मों की हिस्सेदारी,
निभाते रहोगे फिर ज़िम्मेदारी,
उन्हे सीने में छुपाकर खो जाने की,
किताबों के पन्नों में कहीं गुम हो जाने की।।

©®मधुमिता
  

  

Monday, 24 July 2017

मनचला चाँद



देखो ना! ये चाँद रोज़ रात आ धमकता है,
खिड़की से मुझे रोज़ तकता है,
कितना भी मै नज़रें चुराऊँ, 
पर्दे के पीछे छुप जाऊँ,
फिर भी नही हारता है,
हर कोने से झाँकता है।

चाँदनी से छिप-छिप कर,
धीमे-धीमे रुक-रुक कर,
बादलों के पीछे से निकलता है,
आँख-मिचौली खेलता है,
कभी धीमे से छूकर,
आँख मारकर,
मुझे छेड़ वो जाता है,
फिर मंद मंद मुस्कुराता है।

किस से करूँ शिकायत इसकी,
चाँदनी भी तो मतवारी इसकी,
मनचला, बावरा, 
दिलफेंक, आवारा, 
देखो ना! चाँद ने मुझे आज फिर आँख मारी,
अब मै इसे दे दूँगी गारी,
क्या आज चाँदनी घर नही क्या?
कितना निर्लज्ज है उसका चाँद, बेशर्म, बेहया!!
 
©®मधुमिता

Saturday, 22 July 2017

तीज


झूलों की पींगों संग मीठी सी बौछार,
बादलों की थाप पर गायें मेघ मल्हार,
चूड़ी, कंगन, बिंदिया,
मेहंदी, पायल, बिछिया,।

सुर्ख सी होठों की लाली,
झूमती, डोलती कानों की बाली,
सिंधारा संग श्रृंगार, 
कितना मनोरम सखी तीज का ये त्योहार।

मीठे गीतों की बहार,
संग तुम सखियों की छेड़छाड़, 
दुल्हन सी बन करती हूँ प्रार्थना,
देवी पार्वती की आराधना।

"उनकी" सलामती मै चाहती हूँ,
हाथ जोड़ बस यही माँगती हूँ,
मालपुओं और घेवर की खुश्बू, 
देखो अब आ गई है मुझको।

गोटे की चूनर संभालती,
खूब खुश होकर, नाचती गाती,
पीहु पीहु बोला कहीं पपीहरा, 
याद आ गई अब तुम्हारी साँवरिया।

तुम ही तो हो पिया मेरा अनमोल जेवर,
जल्दी से आ जाओ अब पीहर,
संग-संग तीज मनायेंगे,
फिर अपने घर को जायेंगे।।

©®मधुमिता

Friday, 21 July 2017

चार दीवारी को क्या घर कहें !
तेरे दिल का इक कोना ही मयस्सर हो
शाम औ' सहर!
 ©®मधुमिता

Friday, 14 July 2017

रिश्ता



दूर नज़दिकियाँ,
तंग सी दूरियाँ,
क्या है तुझसे वास्ता,
जुदा जुदा फिर भी वाबस्ता,
कैसा ये राबता?
है अजब सा ये रिश्ता।।

©®मधुमिता

भारतीय रेल




बचपन कि छुकछुक गाड़ी,
कितनी अनोखी ये रेलगाड़ी,
मुंबई से इलाहाबाद, 
कोलकाता से अहमदाबाद, 
ताबड़तोड़ यह दौड़ती है,
कभी नही फिर भी थकती ये,
सभी को यह अपनाती,
सब को खुद मे यह समाती,
हिंदू , मुस्लिम,
सिख, ईसाई, 
आपस में सब भाई-भाई,
इसने यही बस जाना है,
सबको अपना माना है,
प्लेटफाॅर्म पर रुकती थमती, 
सबको गंतव्य तक पहुँचाती,
जम्मू या कन्याकुमारी,
रायपुर हो या देवलाली, 
कानपुर के लाला जी,
तमिलनाडु की माला जी,
चाचा चाची,
काका काकी,
ताऊ ताई, 
दीदी और भाई,
कितने रिश्ते बन जाते हैं,
जब बैठ इसमें सब मिल रोटी खाते हैं,
दूर देशों की सैर कराती,
यात्रियों को भ्रमण करवाती,
छू-छू जाती खेत खलिहान, 
जंगल, बीहड़, चाय बागान,
चलती जाती भारतीय रेल,
करवाती दिलों के मेल,
लाल और नीले डब्बों के साथ,
चलायमान देखो छुकछुक गाड़ी,हर दिन रात।।

©®मधुमिता

Thursday, 13 July 2017

बौछार



शीशे के उस ओर
जल का ये कैसा शोर!
थल भी है जलमग्न ,
प्यासी धरती की बुझ गयी अगन l 

बादल खेलें अठखेलियाँ ,
वृक्ष तरु सब हमजोलियाँ ,
पन्नों से चमचम करते हैं पत्ते,
बूँदों की लय पर थिरकते।

हर चीज़ बहती जाती है,
मदमस्त पवन भी सुनो गाती है,
सब कुछ है साफ, धुली धुली,,
सद्य स्नाता सी उजली उजली।  

शीतल कर जाती बूँदों की बौछार,
काले गहरे घन करे पुकार,  
छूने को अातुर ये मस्त मौला मन ,
हर पल रंग बदलता,नटखट सा ये गगन ।।

©®मधुमिता

Saturday, 8 July 2017

ख़्वाब हो तुम...


बंद करती हूँ मै जब ये आँखें तुम्हारे बग़ैर,
हर तरफ स्याह सा होता है शामो सहर,
जब खोलती हूँ मै ये आँखें तुम्हारे संग,
तो दुनिया में भर जाते हैं कितने लुभावने रंग,
तुम्हारे बग़ैर मानो अंधी सी हो जाती मै,
तुम्हारे होने से  सोई दुनिया भी जाग जाती है,
सितारे टिमटिमाते हैं,
लाल, नीले अनेकों रंग अलापते हैं,
तभी अचानक कहीं काले बादलों के घुड़दौड़ सा,
मनमाना अंधेरा मेरी ओर पलटता,सरपट चौंकड़ियाँ भरता,
सम्मोहित सी मै
तुम्हारे बाँहों के घेरे मे,
ख़्वाबों की नगरी मे फिरती,
इधर उधर तितली सी उड़ती,
दीवानी सी तुम्हारे आग़ोश मे,
इक पगली सी, मोहपाश मे,
अचानक आया था एक बादल काला,
सब कुछ बस धुंधला कर डाला,
छोड़ गया मुझे अकेला हर इंसान,
क्या फरिश्ता और क्या शैतान,
मै गुमां करती रही कि तुम आओगे,
एक दिन मुझको संग ले जाओगे,
पर ना तुम आये ना तुम्हारा साया,
सबने मुझको समझाया
पर मै ना मानी,
दिल ने बस तुम संग ही जाने की ठानी,
अब तो अरसे बीते, उम्र हो चली है,
नाम भी तुम्हारा देखो भूल चली मै,
काश मुझे तूफ़ानों से मुहब्बत होती,
बिजली की धमक से मैने आशिकी की होती,
तो हर बादल संग वे आते,
हवाओं संग मुझे ले जाते,
बारिश के पानी से भिगो जाते,
तन और मन सराबोर कर जाते।

तुम हो भी कि नही हो!
या सिर्फ मेरे दिमाग़ की एक उपज हो,
आँखें मूंदते ही ये जग सारा सो जाता है,
अंधियारे में कहीं खो जाता है,
हाँ तुम ख़्वाब हो शायद,
बस कल्पना मात्र हो शायद,
एक कारीगरी मेरे ज़हन का,
वजह मेरी पशोपेश और उलझन का,
नही! पर तुम ही तो मेरी हकीकत हो,
क्यों नही मान पाती कि तुम नही हो?
देखो ना अब भी, बंद करती हूँ मै जब ये आँखें तुम्हारे बग़ैर,
हर तरफ स्याह सा होता है शामो सहर,
जब खोलती हूँ मै ये आँखें तुम्हारे संग,
तो दुनिया में भर जाते हैं कितने लुभावने रंग ।।

©®मधुभिता