Wednesday 6 December 2017

आस..




अदृश्य में तुझे तलाशती हूँ ,
तूझे ढूंढ़ने को अंधेरे बुहारती हूँ,
हवा के बोसों मे तेरे लबों की तपिश है,
सितारों के पीछे से झाँकतीं हुई तेरी नज़रे हैं।

पीले पन्नों में ज़ब्त तेरी यादों को सहलाती हूँ,
दिल में बसी तेरी सूरत को निहारती हूँ,
रोम रोम में बसी तेरी ही निशानियाँ हैं,
नसों में दौड़ती तेरे यादों की रानाईयाँ हैं।

निस्तब्ध में तेरे कदमों की आहट सुनती हूँ,
परदों के पीछे की हलचल में तूझे खोजती हूँ,
मेरे अस्तित्व के हर पोर पोर में तू है,
मेरे जीने का मकसद ही तू है।

इन फूलों और पत्तों में भी तुझे पाती हूँ,
नदियों के कलरव के साथ तेरे गीत गुनगुनाती हूँ,
इन नज़रों को बस तेरे छब की प्यास है,
इन साँसों को अब सिर्फ़ तेरे मिलने की आस है।।

©®मधुमिता
 

No comments:

Post a Comment