नामालूम
सन्नाटे का चीत्कार भी,
सितारे हैं,
घना अंधकार भी,
स्याह है
और स्याही भी ,
सुर्ख़ लब हैं,
लहु का लाल भी,
उल्टे लटके चमगादड़ हैं,
रंगबिरंगे मोर भी,
अनंत अथाह सागर है,
अथाह अनंत अंतरिक्ष भी,
कोटी कोटी नक्षत्र है,
सैकड़ो आकाश गंगायें भी,
उल्कापात है,
झंझावात भी ,
अनर्गल सोच हैं,
आशंकाएं भी ,
भय है
और संत्रास भी,
उस अदृष्ट का,
अगोचर, अप्रत्यक्ष का,
एक अज्ञात, अपरिचित सा ये जहाँ,
भटक रही मै, नामालूम कहाँ ।।
©®मधुमिता
No comments:
Post a Comment