Saturday 8 July 2017

ख़्वाब हो तुम...


बंद करती हूँ मै जब ये आँखें तुम्हारे बग़ैर,
हर तरफ स्याह सा होता है शामो सहर,
जब खोलती हूँ मै ये आँखें तुम्हारे संग,
तो दुनिया में भर जाते हैं कितने लुभावने रंग,
तुम्हारे बग़ैर मानो अंधी सी हो जाती मै,
तुम्हारे होने से  सोई दुनिया भी जाग जाती है,
सितारे टिमटिमाते हैं,
लाल, नीले अनेकों रंग अलापते हैं,
तभी अचानक कहीं काले बादलों के घुड़दौड़ सा,
मनमाना अंधेरा मेरी ओर पलटता,सरपट चौंकड़ियाँ भरता,
सम्मोहित सी मै
तुम्हारे बाँहों के घेरे मे,
ख़्वाबों की नगरी मे फिरती,
इधर उधर तितली सी उड़ती,
दीवानी सी तुम्हारे आग़ोश मे,
इक पगली सी, मोहपाश मे,
अचानक आया था एक बादल काला,
सब कुछ बस धुंधला कर डाला,
छोड़ गया मुझे अकेला हर इंसान,
क्या फरिश्ता और क्या शैतान,
मै गुमां करती रही कि तुम आओगे,
एक दिन मुझको संग ले जाओगे,
पर ना तुम आये ना तुम्हारा साया,
सबने मुझको समझाया
पर मै ना मानी,
दिल ने बस तुम संग ही जाने की ठानी,
अब तो अरसे बीते, उम्र हो चली है,
नाम भी तुम्हारा देखो भूल चली मै,
काश मुझे तूफ़ानों से मुहब्बत होती,
बिजली की धमक से मैने आशिकी की होती,
तो हर बादल संग वे आते,
हवाओं संग मुझे ले जाते,
बारिश के पानी से भिगो जाते,
तन और मन सराबोर कर जाते।

तुम हो भी कि नही हो!
या सिर्फ मेरे दिमाग़ की एक उपज हो,
आँखें मूंदते ही ये जग सारा सो जाता है,
अंधियारे में कहीं खो जाता है,
हाँ तुम ख़्वाब हो शायद,
बस कल्पना मात्र हो शायद,
एक कारीगरी मेरे ज़हन का,
वजह मेरी पशोपेश और उलझन का,
नही! पर तुम ही तो मेरी हकीकत हो,
क्यों नही मान पाती कि तुम नही हो?
देखो ना अब भी, बंद करती हूँ मै जब ये आँखें तुम्हारे बग़ैर,
हर तरफ स्याह सा होता है शामो सहर,
जब खोलती हूँ मै ये आँखें तुम्हारे संग,
तो दुनिया में भर जाते हैं कितने लुभावने रंग ।।

©®मधुभिता

 

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