Tuesday 13 September 2016

आखिरी झलक...




हर आहट पर लगता है
तुम आए हो,
हर साये को भी
अब मै 'तुम' समझती हूँ,
हवा की आवाज़ भी 
अब तुम्हारी साँसों सी लगती हैं।




साँसों की रफ्तार 
भी अब धीमी सी
पङने लगी है,
हर घङी इस धङकते दिल को
तुम्हारे ही मिलने
की आरज़ू है।     




बेजान सी जान 
आस लगाए बैठी है,
अपने अंदर कई अधुरी
प्यास लिए बैठी है,
फिर भी ढीठ सी 
रफ्ता-रफ्ता दिन गिनती जाती है।



आसपास तुम्हारी यादों को
समेटकर रखा है,
कई पोटलियाँ हैं,
लिफ़ाफ़े हैं,
जो आज भी ताज़ा से हैं 
तुम्हारी यादों से महकते हुए।



सर की ओढ़नी मेरी
सरकती रहती है,
बस हाथों का 
स्पर्श तुम्हारे पाने को,
पलकें भी मचलती रहती हैं,
हर पल तुम्हे सहलाने को।



नज़र को  अभी  तक 
इंतजार  है  तुम्हारा ,
दीदार  जो  हो जाए तो 
सुकून आ जाए इन निगाहों को,
थक  गईं   बहुत, अब बस 
तुम्हारी आखिरी झलक पाकर, बंद हो जाएँ नज़रें !!

©मधुमिता

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