Friday 14 October 2016

जीवन्त ज़िन्दगी





ज़िन्दगी है जीने का इक बहाना,

कभी हँसना तो कभी रुलाना,

कभी मिलना, कभी मिलाना,

कभी छुपना ,कभी खो जाना

और फिर यूँ ही जीते हुए

इक दिन सब कुछ छोड़कर, मरकर चले जाना।



कभी डग भरना, कभी गिर जाना,

कभी गिरके चोट खाना, कभी चोट खाके गिर जाना,  

कभी आँसूं ना रोक पाना,कभी जीभर मुस्कुराना,

कभी संभलना, कभी संभालना,

और फिर यूँ ही संभलते-संभालते हुए

इक दिन सब कुछ छोड़कर, मरकर चले जाना।



कभी बनना, कभी टूटना,

कभी तोडना,कभी सँवारना,

कभी बनाना, कभी उजाड़ना,

कभी पीछे पलटना,कभी आगे को बढ़ जाना,

और यूँ ही आगे-पीछे पग रखते हुए

इक दिन सब कुछ छोड़कर,  मरकर चले जाना।



 कभी प्यार लुटाना,कभी नफरत फैलाना,

कभी पुचकारना, कभी लताड़ना,

कभी थामना  , कभी धिक्कारना,

 कभी खुद ही समझ ना पाना,कभी सबको समझाना,

और यूँ ही समझते-समझाते

 इक दिन सब कुछ छोड़कर, मरकर चले जाना।



 कभी चलना, कभी यूँ ही रुक जाना,

कभी थमना,कभी बस इन साँसों का चलना जारी रखना,

कभी मिटना- मिटाना,कभी बस यूँ ही खुद को थकाना,

 कभी छिपना-छिपाना,कभी हारना -हराना,

कभी दौड़ना-दौड़ाना,कभी बोझिल क़दमों से लौट आना,

बन गयी देखो अपनी ज़िन्दगानी,बस सिर्फ और सिर्फ एक बहाना;

और कहते हैं हम कि इक दिन सब कुछ छोड़कर, मरकर है चले जाना!



जब इक दिन सब कुछ छोङकर, मरकर है चले जाना,

तो क्यूँ ना छोड़ जाएँ जीवन का नया अफसाना,

प्यार,उद्धार और नवजीवन का दिल से नज़राना,

सुख और दुःख को संग संग पिरोते जाना,

समय के लय से जीवन का लय मिलाते चलना,

कभी खुद टूटकर भी मनकों को सौहार्द की माला में जोड़ जाना

और परेशानियों सम्मुख शैल कभी बन जाना,

हैवानियत,बदनीयती,नफरत की ज्वाला को बिलकुल ख़ाक कर जाना।



इंसान को इंसान से, दिल के रिश्तों से जोड़ना,

मधुर,सुन्दर संगीतमय जीवन की संरचना,

इसी की कोशिश,कल्पना,अनुभूति और संयोजना,

जब दिलों को अमान्विकता से ना पड़े भेदना,

बस कुछ ऐसा करते हुए,चलते चले जाना,

कभी हँसते हुए,कभी कल्लोल,किलकारी और बेख़ौफ़  मुस्कुराते हुए

इक दिन सब कुछ छोड़कर, जीवन को जीवन्त करके

भरपूर जी के,अपने पद चिन्हों को छोड़कर,बस आगे को है चले जाना

बस आगे को है चले जाना.............।।

©मधुमिता

No comments:

Post a Comment