Saturday 9 July 2016

सजना 


बैठी हुई वो दर्पण के सामने,
आने वाला है कोई हाथ थामने,
आँखों में रंगीन सपने,
सरपट भागती सी धङकनें।

एक अनजाना सा डर भी है, 
खुशियों का सागर भी है,
करनी उसको तैयारी है,
बहुत सी,ढेर सारी है।

मचला उसका दिल हल्का,
हल्के से आँचल ढलका,
ज़रा सा आँसू छलका,
मौन था गूढ़, दो पल का।

फिर करने लगी श्रंगार, 
पहले चढ़ाये कंगन चार,
फिर गले में मोतियों का हार,
झुकी तो कर उठी,पैरों मे पायल झंकार।

कानों में हीरों के बूंदे, 
जिनमें वो अपना अक्स ढूंढे,
बैठी चुप,मन की आँखें मूंदे,
बोलना चाहे पर आवाज़ भी रूंधे।

छोङना नही चाहे वो बाबुल का द्वार,
फिर भी है जाना,इस देश के पार,
धीरे से आँखों में खींची काजल की धार,
सुकोमल गर्दन पर चढ़ाया,रत्नों जङा,पुश्तैनी हार।

बाल काढ़ कर जूङा बनाया,
उसपर रेशमी चूनर उढ़ाया,   
फूल गूंथ,माला बनाया, 
माला को जूङे पर लिपटाया।

करधनी,चूङी और टिकुली,
होंठों और गालों की सूर्ख़ी, 
माथे पर सजी सूर्ख़ बिंदी,
तब उठी पलक उसकी।

अपने को निहारती,
इस नूतन रूप को पहचानती,
अपने से ही शरमाती,
मन ही मन वो मुस्काती।

बन गयी देखो वो दुल्हन,
ले जायेंगे उसको साजन,
हार गयी है वो अपना मन,
हो गयी तैयार,छोङने को अपना आंगन।

तैयार चलने को देश ऋपराये,
अपना हाथ सजना को थमाये,   
खुद को उनकी दुल्हन बनाये,
अनगिनत खुशियों के सपने सजाये।

देखो तो कैसे सज गयी  है,
कितनी सुंदर लग रही है,
अप्सरा सी दिख रही है, 
कितनी ज़्यादा जंच रही है।।

©मधुमिता

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