Monday 25 July 2016

सपनों का वो द्वीप 




हमारे सपनों का वो द्वीप, 
सागर के थपेड़ों के बीच,
स्वप्न जिसे रहे थे सींच,
भरे थे जिसमें मोती और सीप,
जलते थे जिस पर असंख्य दीप,
बजते रहते प्यार भरे मधुर से गीत।


वह पथरीला,हरा भरा सा टापू,
फैला जिसमें हरे काई का जादू,
कहीं मटमैली फिसलन,
कहीं गुलाबी जकङन, 
कहीं बदनों को सहलाती हवा,
कहीं दो धङकते दिल,जवां,
जैसे तुम्हारे अधरों से गीत निकलते
और चारों ओर गूंजते,
वहीं कहीं हरी सी काई रेंगती,
अपनी ही गंध में कौंधती,
मखमली कालीन सी लिपटी
उन सुंदर गुफाओं से, चिपटी
हुई, मानों जान हो उनकी,
निर्जीव पहाङी दीवारों में जान फूंकती।


वहीं एक नन्हे से दरार में, 
हवा के बयार में, 
वह रंगीन सा फूल जो डोल रहा था,
हमारी खुशियों में मस्त, इतरा रहा था,
जादुई उसकी बोली थी,
कुछ मूक शब्दों की टोली थी,
जो तुम्हारा नाम ले पुकारती,
फिरकी सी आती लहर जब बूंदों से उसे संवारती,
हर पेङ, हर दरख़्त हमें पहचानते,
हर पंछी,हर प्राणी वहाँ,हमें अपना जानते,
हर लता तुम्हारे हाथों को जाती थी चूम,
हर तरू साथ जताता झूम-झूम,
उस ऊँचे से पथरीली गुफ़ा में,
नाज़ुक से दिल, हमारे ही बसते थे।  


वह पथरीली,ऊँची सी दीवार,
मानों बंद करती हुई सारे द्वार,
बस एक मै और एक तुम,
सिर्फ दो हम,
पूरी दुनिया से हटे हुये,
हर जाने-अंजाने से कटे हुये, 
बस एक दूसरे में सिमटे,
दो दिल एक दूजे की आगोश में लिपटे,
तुम गीत मेरे सुनती,
मुझे अपने संगीत लहर में बहाती,
अंदर तक भिगो जाती,
उस पगली लहर सी जो पत्थर के सीने से टकराती,
टकराकर उसे नहला जाती,
अपनी शीतलता दे जाती।


मेरे गीत गाते मेरे प्यार का अफ़साना,
तेरे बारे मे चाहते हर एक को बताना,
चारों दिशाओं में फैला था बस प्यार,
इंद्रधनुषी सा ग़ुबार, 
जिसमें सिमट कर रह गयीं थी लहरें,
धरती, अम्बर, समय के काफिले, 
समुन्दर,वह टापू और सारे फूल,
काई,सैलाब,रेतीली धूल,
वह अधखुला सा बीज,
धरती की छाती के बीच
जो अपने अधर धर रहा था,
आसमान पर जो रूपहला बादल विचर रहा था,
सब हमारे प्यार की कहानी सुनाते थे,
हर पल हमें गुनगुनाते थे।


हर हवा हमें  पहचानती थी,
हर ऋतु हमें अपना मानती थीं,  
रेशमी फूलों ने हमें संवारा था,
तारों ने चमचमाता चादर ऊपर बिछाया था,
यहीं कहीं हमारा प्यार था पनपा,
हर क्षण के साथ था बढ़ता,
हमारा प्रेम बिखरा था रातों में,
सूरज के किरणों में,शर्मीली शामों में,
हवा भी कभी तुम्हारा,कभी मेरा नाम पुकारती,
लहरें भी हमें अठखेलियों को बुलाती,
फूल,फल, मिट्टी, पेङ,
शाखा, पत्ते,कली और जङ,
सब थे हमारे प्यार के साक्ष्य,
यहीं था हमारा छोटा सा साम्राज्य।


तुम्हारा नाम ले लेकर मेरे लब,
लेते तुम्हारे सूर्ख़ अधरों का चुम्बन जब,
तब समां भी सूर्ख़ हो जाता था,
वह सूर्ख़ गुलाब भी शरमा जाता, 
जिसकी हर पंखुङी पर नाम तेरा लिखा था मैने,
जिस तरह हर गुफा की दीवार पर मेरा नाम लिखा था तुमने,
साथ-साथ हम चलते चलें,
एक दूजे संग बढ़ते रहे,
ना कोई भेद,ना छुपा कोई राज़,
ज़िन्दगी के बोलों पर बजाते प्यार का साज़,
तुम मुझमें, मै तुम मे शामिल, 
दोनो बस मुहब्बत के कायल, 
दो दिल और जान एक हो चुके,
दोनों ही एक दूसरे के दिल में छुपे ।


हमारे सपनों का वो द्वीप, 
सागर के थपेड़ों के बीच,
स्वप्न जिसे रहे थे सींच,
भरे थे जिसमें मोती और सीप,
जलते थे जिस पर असंख्य दीप,
बजते रहते प्यार भरे मधुर से गीत।

©मधुमिता

No comments:

Post a Comment