नही हमारे लिये यह निःशब्दता ना ही सन्नाटा मौत का,
ना पृथकता ना ही संजातीय पार्थक्य ,
और ना यह विश्रृंखल तंत्रिका विध्वंसकारक आवाज़ बमों और गोलियों की,
या यह खूनी बदबू , रक्तरंजित धरती की,
उष्म स्वर में शांति की आवाज़ लगाओ, मुहब्बत के सैलाब में, इस दुनिया को परिगृहित कर।
©®मधुमिता
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