Friday 17 June 2022

मेरे माथे की बिंदिया

 बिंदिया मेेरी चमके चमचम,

माथे पर मेरे हर दिन हरदम,
बैठी मेरे भौंहों के बीच,
देखूँ मैं उसको आँखों को भींच,
गर्मी, सरदी और बरसात, 
है मेरे माथे का साज,
सखी सी घूमे वो साथ,
सुबह, दुपहर, दिन और रात,
आज फिसलकर गिर गई वो,
सिमटकर कहीं छिप गई वो,
हर कोने में दी आवाज़,
ढूंढ़ा हर अलमारी, 
और हर दराज, 
याद आई फिर रात की बात, 
रूठा था उससे कल चाँद,
छिप गया था कहीं,
अंधियारे की लेेकर ओट,  
पर रात को तो आसमां सजाना था,
अंधेरे को भी चमकाना था,
प्रेम- प्यार को महकाना था,
बिंदिया तो मेरी थी सजी यहीं,
चमचम चमचम दमक रही,
घने स्याह को रौशन करती,
पूनम के चाँद सी चमकती,
मुस्कुरा रही थी दूर आसमान पर
क्योंकि...
मेरे माथे की बिंदिया उधार ले ली 
आज श्याम रात ने...

 ©®मधुमिता

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