मैंने दिल पर हाथ रखा जब
हौले से तब दिल ने कहा
कुछ दिल से-
सुनो ये आँसू बह जाने दो
जो होना है
हो जाने दो
जो जाता है
उसे जाने दो
कुछ भी नही तुम्हारा है
बस सिवाय तुम्हारे अपने के
उठो ज़रा
आईने में झांको
सशक्त हो तुम
सबल हो
सुघड़ हो
टूटती हो
बिखरती हो
फिर फिर तुम जीवंत होती हो
जीवन में भी
जान सबके ही
फिर से ही तुम
फूँक जाती हो
देखो अब तुम मुस्कुराओ
ज़रा सा सम्भलो
निर्झर बनो
जीवन सरिता सम
मस्त बहो
निज को संवारो
कुछ रंग सजा लो
काजल लगाओ
माथे पर अपनी
बिंदिया सजाओ
ख्रुद को भी तो ज़रा निहारो
देखो इन दो आँखों में
अनदेखा सा तेज है इनमें
जज़्ब करो
समेटो ख्रुद को
कुछ गीत कहो
कविता करो
शब्दों संग तुम नृत्य करो
अहसासों को पिरो पिरोकर
निज अस्तित्व का मान रचो
नही दरकार किसी की तुमको
ये सब आनी जानी है
उद्घोष करो
शंखनाद करो
तुम लक्ष्मी हो
तुम शक्ति हो
तेजस्वी सी
चलो आगे
अब विजयपताका फहराओ
दिल पर अपने हाथ धरो
सुनो तो क्या कहती हो तुम
कैसे स्वच्छंद उड़ना चाहती हो
पूछो तो अपने दिल से तुम
फिर दिल पर मैंने हाथ रखा जब
धक-धक-धक-धक
उसको गुनगुनाते पाया
मुस्कुराई मैं
जब दिखे तिमिर में
रौशन से कुछ जुगनू हों जैसे
शब्द मेरे बिखरे पड़े थे
उन सबको सजा आई
आकाश के उस नवपटल पर
जब किरणों ने ली अंगड़ाई
गीत कई लिख डाले दिल से
भोर भी मंद मंद मुस्काई
जब दिल ने कहा
मुझसे
कुछ दिल से
©®मधुमिता
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