दीपावली....
फूलों के बंदनवार सजे हैं
संग-संग मानों शहनाई बजे है
सजी हुई रंगोलियाँ
चारों ओर हैं रंगीनियाँ
आतिशबाज़ी की करतल ध्वनि
वायु संग थिरकती प्रतिध्वनि
रेशम सा कारा अंधेरा
आज दीप मालों से संवरा
चूमने को धरती का मन
उतरे हैं तारें और सारा गगन
गुलाबी सी हवा संग
दीपशिखा आज डोल रही है
रात के अंधियारे तले
तारों की बारात सजी है...
©®मधुमिता
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