Friday 2 November 2018

क़रीब...



भरी महफ़िल में आज 
उन आँखों के चिराग जल रहे हैं,
दूरियाँ सिमट रही हैं, 
दिलों के साज़,
धुन मुहब्बत की छेड़ रहे हैं ,
जल रही है शमा 
इतरा इतरा कर,
परवाने सब आमादा हैं
उस पर मर मिटने को,
सुरमई सी रात 
सरक रही है धीमे-धीमे,
सुनहरे सितारों को  
ख़ुद में समेट कर,
आहिस्ता-आहिस्ता 
हया की चिलमन मचल रही है,
ख़ुद आराई से शरमा कर,
सुलगते जज़्बातों को 
झुकी पलकें छिपा रहे हैं,
दो इश्क आज 
सितारों के शामियाने तले,
एक जान होने को 
क़रीब आ रहे हैं।।
 

©®मधुमिता

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