Thursday, 15 November 2018

चक्रवात...



बावरा ये मेरा मन  
मन मेरा उद्धत
उद्धत जैसे हो चक्रवात
चक्रवात से कुछ अनुराग
अनुराग और अभिलाषा
अभिलाषा भरा इक संसार
संसार जिसमें हों रंग  कई
कई चित्र अनगिनत
अनगिनत से कई सपने
सपने जो बुने मैने
मैने तुम्हारे यादोँ संग
संग चलता साया तुम्हारा
तुम्हारा ही तो है ये मन    
मन जो है बावरा 
बावरा ही तो मन है ये
ये मन मेरा तनिक उद्धत  
उद्धत चक्रवात सा !!

©®मधुमिता

Monday, 12 November 2018

दीपावली....


फूलों के बंदनवार सजे हैं
संग-संग मानों शहनाई बजे है
सजी हुई रंगोलियाँ
चारों ओर हैं रंगीनियाँ
आतिशबाज़ी की करतल ध्वनि
वायु संग थिरकती प्रतिध्वनि
रेशम सा कारा अंधेरा
आज दीप मालों से संवरा
चूमने को धरती का मन
उतरे हैं तारें और सारा गगन
गुलाबी सी हवा संग
दीपशिखा आज डोल रही है
रात के अंधियारे तले
तारों की बारात सजी है...

©®मधुमिता

Friday, 2 November 2018

क़रीब...



भरी महफ़िल में आज 
उन आँखों के चिराग जल रहे हैं,
दूरियाँ सिमट रही हैं, 
दिलों के साज़,
धुन मुहब्बत की छेड़ रहे हैं ,
जल रही है शमा 
इतरा इतरा कर,
परवाने सब आमादा हैं
उस पर मर मिटने को,
सुरमई सी रात 
सरक रही है धीमे-धीमे,
सुनहरे सितारों को  
ख़ुद में समेट कर,
आहिस्ता-आहिस्ता 
हया की चिलमन मचल रही है,
ख़ुद आराई से शरमा कर,
सुलगते जज़्बातों को 
झुकी पलकें छिपा रहे हैं,
दो इश्क आज 
सितारों के शामियाने तले,
एक जान होने को 
क़रीब आ रहे हैं।।
 

©®मधुमिता