Friday 6 April 2018

रात...

सलेटी मख़मल सा ये आसमां,

बहुत अकेला है देखो!

ना तो चंदा का साथ है,

ना चाँदनी की चिलमन,

ना कोई रात का परिंदा है

और ना ही कोई पतंगा,

मोम सी पिघल रही है रोशनी शमा की

सहर के इंतज़ार में,

हर लम्हे की साँसों को सुन लो,

दस्तक जो देतीं वक़्त के दरवाज़े पर,

ख़ामोशी को सुनो,

छुपी हुई है वो इस शब के सलवटों में,

ख़ौफ़ है उसे इस अंधेरे से

गुम हो रही है जिसमें हर उजली सी उम्मीद,

देखो! आज रात स्याह बहुत है,

कुछ सितारे तुम सजा क्यों नही देते!

©®मधुमिता

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