Thursday 9 February 2017

बसंत का गीत



सुनो बसंत को गाते,
गुनगुन, गुनगुन गुनगुनाते।

सर सर चलती बयार,
मीठी सी टंकार,
रंगीन तितलियों के पर काचित, 
चहकती कूकती कोयल उत्साहित।

अमराई में बौरों का मौसम,
सूरज की किरणें कुछ कोमल, कुछ मद्धिम, 
सरसों का पीला आँचल,
शुभ्र आकाश में उङते, उज्जवल,धवल बादल दल।

पंछियों की रागिनी, कलरव में गायन,
नूतन पुष्प मनभावन ,
पोर पोर में रंगों के दर्शन, 
हर कली, फूल, पंछी का आनंदमय नर्तन।

साथ में थिरकता झील का पानी, 
बसंत मानों एक चंचल सी लङकी कोई सुहानी,  
धीरे-धीरे गुनगुनाती कोई गीत,
खोजती अपने सा सुंदर कोई मीत।

कानों में मिसरी सी घोलती, बसंत का गीत
कर दे जो नवजीवन का संचार, जगाये प्रीत,
नवीन ऊर्जा का संचार करती,
उल्लास, जोश और आशा से भरती।

सुनो बसंत को गाते,
गुनगुन, गुनगुन गुनगुनाते।।

©मधुमिता

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