Wednesday 7 December 2016

बिछी पलकें. .....



शाम ने रंगी चादर बिछाई हुई है,
सितारों ने महफिल सजाई हुई है,
हवा की तपिश गरमाई हुई है,
कली कमल की यूँ खिल रही है,
बाग़े वफ़ा भी यूँ शरमा रही है,
जैसे वो मेरे लिये पलकें बिछाई हुईं हैं ।


झिलमिलाती कालीन बिछाई हुई है,
धड़कनों की ताल पर, दिल ने तान छेड़ी हुई है,
हर कूचे,गलियारों में वो झांकती मिली है,
पलटकर,पलक में वो ग़ायब मिली है,
इंतज़ार भी यूँ अब इतरा रही है,
जब उसने मेरे लिये पलकें बिछाई हुईं हैं ।


दुल्हन सी शब सजाई हुई है,
जुगनुओं ने बारात निकाली हुई है,
झींगुरों की सरगम ने, अनोखी सी धुन सजाई हुई है,
मेरे शब्दों ने झीनी सी झालर एक बनाई हुई है,
क्योंकि छुईमुई सी वो, सुर्ख, शरमाई हुई है,
इंतज़ार में मेरे जो पलकें बिछाईं हुईं हैं।।

©मधुमिता

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