Tuesday 20 December 2016

अक्स..



ना वफ़ा से कोई रिश्ता, 
ना ज़फा से कोई सरोकार,
ना कोई आज,
ना ही कोई कल, 
अपना भी नही,
ना ही बेग़ाना,
ना चमक,
ना रौनक,
बेरंग सा चेहरा,
बेनूर आँखें,
गड्ढों में धंसे 
टूटे सितारों से,
ना मुस्कान,
ना आन, बान, शान,
थकी हुई सी,
टूटी हुई, 
लाश बन चुकी
एक जीवन सी,
खुद को ढूढ़ती,
आईने में एक बिंब 
अनदेखी, 
अनजानी सी
देखती हूँ, 
डर जाती हूँ, 
मुँह मोड़ लेती हूँ 
उससे,
या खुद से ?
मटमैले, बेजान से इस
चेहरे को नही जानती मै,
ख़ुद ही अपने अक्स को 
नही पहचान पाती हूँ अब...!!

©मधुमिता

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