मुई आँखें मानो किसी अलपिन की नुकीली चुभन लिए हों,
क़ातिल की तलाश में जाने किस मोड़ पर जेम्स बॉन्ड आ खड़ा हो,
और जब दास्तान मुकम्मल हो जाएगी, कहानी अंजाम पायेगी,
तब अदालत की ख़ामोशी में जज भी मुस्कुराकर कहेगा- “मुकर्रर… ज़रा अफ़साना दोबारा सुनाईये।”
©®मधुमिता
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