Thursday, 23 June 2022

यादों के दरख़्त 

 


यादों के दरख़्त 

खुशबू से होते हैं

मन को महकाते हैं

और आत्म से 

वे लिपट लिपट जाते हैं

मेरे वजूद का हिस्सा हैं वे

बीता कोई किस्सा हैं वे

इतिहास के पन्ने सा

पर करीब है अपने सा

ना वो जकड़ते हैं

ना ही साथ छोड़ते हैं

ख्रामोश तवारीख़ से

कभी किसी सीख से 

चंदन के भुजंग से कभी

तो रेशमी सतरंग कभी 

नर्म गर्म से मख्रमली और शीतल

विस्मयकारी इनके अंतस्तल

कभी गुदगदाते

कभी प्यार से सहलाते

ये यादों के दरख़्त 

साथी से होते हैं

ऐसी ही इनकी छांव भी होती हैं

भूल जाओ कभी तो झकझोरती हैं 

ज्ञान चक्षु  भी खोलतें हैं 

दिल को टटोलते हैं

मुझको तो ये यादों के दरख़्त 

किताबों से लगतें हैं

अथाह अनंत का राज़ छुपाये

ख्रामोश खड़े ये मुझको पढ़ते हैं



 ©®मधुमिता



Friday, 17 June 2022

मेरे माथे की बिंदिया

 बिंदिया मेेरी चमके चमचम,

माथे पर मेरे हर दिन हरदम,
बैठी मेरे भौंहों के बीच,
देखूँ मैं उसको आँखों को भींच,
गर्मी, सरदी और बरसात, 
है मेरे माथे का साज,
सखी सी घूमे वो साथ,
सुबह, दुपहर, दिन और रात,
आज फिसलकर गिर गई वो,
सिमटकर कहीं छिप गई वो,
हर कोने में दी आवाज़,
ढूंढ़ा हर अलमारी, 
और हर दराज, 
याद आई फिर रात की बात, 
रूठा था उससे कल चाँद,
छिप गया था कहीं,
अंधियारे की लेेकर ओट,  
पर रात को तो आसमां सजाना था,
अंधेरे को भी चमकाना था,
प्रेम- प्यार को महकाना था,
बिंदिया तो मेरी थी सजी यहीं,
चमचम चमचम दमक रही,
घने स्याह को रौशन करती,
पूनम के चाँद सी चमकती,
मुस्कुरा रही थी दूर आसमान पर
क्योंकि...
मेरे माथे की बिंदिया उधार ले ली 
आज श्याम रात ने...

 ©®मधुमिता