Wednesday 7 February 2018

मुहब्बत हूँ 



कहानी हूँ इक मुहब्बत भरी,
पन्ना दर पन्ना हूँ आशिकी,
हर हर्फ़ से झाँकती हूँ,
हर एक फ़िक़रे
हर जुमले में हूँ शामिल,
अहसासों के रंगों से भरी,
नज़ाकत से लिखी गयी,
प्यार भरा अफ़साना मैं,
क़सीदा कहो, 
या कहो फ़साना,
नज़्म कहो
या गज़ल कहो,
हर लफ़्ज़ लफ़्ज
बस इश्क हूँ,
ना समझ पाया कोई अबतक,
कभी ना कोई पढ़ पाया,
सुनो! बड़े कायदे पढ़े हैं तुमने,
क्या मुझ तक भी तुम आओगे?
सुना है तुम मुहब्बत को पढ़ते हो!
क्या मुझे तुम पढ़ पाओगे?

©®मधुमिता 

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