Saturday, 16 September 2017

तार-तार


आज फिर दिल में कुछ चटक गया,
किसी को कुछ खटक गया,
कोई रिश्ता हुआ तार-तार ,
दोस्ती रोई ज़ार-ज़ार,
बेहिसाब दर्द है,
जज़्बात मानो सर्द हैं,
मुहब्बत है सिसक रही,
भरोसे की डोर फिसल रही,
आँसू कमबख़्त बरस रहे,
ज़ख़्म दिल के हाय, फिर रिस रहे !!

©®मधुमिता

Sunday, 10 September 2017

नामालूम 



ख़ामोशी है,
सन्नाटे का चीत्कार भी,
सितारे हैं,
घना अंधकार भी,
स्याह है
और स्याही भी ,
सुर्ख़ लब हैं,
लहु का लाल भी,
उल्टे लटके चमगादड़ हैं,
रंगबिरंगे मोर भी,
अनंत अथाह सागर है, 
अथाह अनंत अंतरिक्ष भी, 
कोटी कोटी नक्षत्र है,
सैकड़ो आकाश गंगायें भी, 
उल्कापात है,
झंझावात भी ,
अनर्गल सोच हैं,
आशंकाएं भी ,
भय है
और संत्रास भी,
उस अदृष्ट का,
अगोचर, अप्रत्यक्ष का,
एक अज्ञात, अपरिचित सा ये जहाँ,
भटक रही मै, नामालूम कहाँ ।।

©®मधुमिता