Saturday 10 June 2017

ये रात...


सारी रात तुम्हारे हाथों को थाम चुप बैठना चाहती हूँ मै,
इन नज़रों को बस तुम पर रोक लेना चाहती हूँ मै,
संवरना चाहती हूँ तुम्हारे होठों के स्पर्श से,
सिमटी तुम्हारी ख़ुशबू मे, ज़मीं से अर्श तलक
रूह मेरी पिघलती हुई तुम्हारी रूह में,
अरमान लहरों से नाच उठते,
थोड़े पगलाये, मचलते से,
बस एकटक तुम्हे देखती हूँ,
निहारती रहती हूँ,
उतार लेना चाहती हूँ तुम्हारे बिम्ब को
वक्त की गहराईयों तक
ताकि साथ रहे तुम्हारा जन्मों जन्मांतर तक,
घिरना चाहती हूँ बाजुओं के घेरे में तुम्हारे,
महसूस करना चाहती हूँ
इस अंधेरी रात में बस तुम मे खो जाना चाहती हूँ।


आग़ोश मे तुम्हारे,सारी रात सिमट कर रह जाना चाहती हूँ मै,
इस पल को बस यहीं रोक लेना चाहती हूँ मै,
सीने में तुम्हारे चेहरा अपना छुपाकर,
जज़्ब कर लेना चाहती हूँ  तुम्हारे बदन की ख़ुश्बू 
अपनी रगों में, सुर्ख़ खूं में रंगकर
रोम रोम में भर लेना चाहती हूँ ,
दहकती हुई इस रात को समेटकर
रख लूँगी यादों के ताज़े फूलों में पिरोकर,
हर छुअन की याद का एक अलग सा फूल,
इनसे दामन भर लेने दो मुझे,
सो जाने दो मुझे पहलू मे अपने,
मुहब्बत में, महफूज़,
अगली सुबह देखूँ साथ तुम्हारे,
हर साँस साथ लेना चाहती हूँ,
हमेशगी तलक, इश्क में रंगीं रहना चाहती हूँ ।। 

©मधुमिता

No comments:

Post a Comment