Wednesday, 13 April 2016

इस धरा की नारी

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महसूस करो मेरी छुवन,
अहसास करो मेरी तपन,
समेटे हुये मेरा अपनापन,
ये धरा,आकाश और पवन।
जन्मी मै करने प्रेमार्पण,
करने खुशियों के पुष्प अर्पण,
भर दूं हर घर आंगन
में,प्रेम,स्नेह और अपनापन,
सपनों के परों पर भरूं मै उड़ान,
हर दिशा मे बिखेरूं मुस्कान।।

मैं हूं इस धरा की नारी,
ऊपरवाले की, अपनी संवारी,
प्रेम,प्यार से भरी हुई डारी,
जादू की हूं अजब पिटारी।
मां हूं और बेटी भी हूं मै,
बहु भी और सहेली हूं मै,
पति की पत्नी हूं मै,
हर रिश्ते की सूत्र हूं मै,
हर दिल बेहद पास है मेरे,
फिर भी हूं मै आसमां के परे।।

मेरी तपिश से है सूरज की तीव्रता,
मेरी शीतलता से ही चंदा की शुभ्रता,
झरनों की कलकल मे है मेरा अल्हड़पन,
फूलों सा कोमल मेरा मन।
हूं फिर भी पर्वत सी सशक्त, अटल,
पी जाऊं जीवन का हर गरल,
भरे हुये हृदय में अथाह ममता,
हर रांध्र मे केवल निश्छलता,
आओ थाम लो मेरा हाथ,
देने को हरपल मेरा साथ।।

पोछूंगी मै हर आंसू,
प्यार से सहलाकर गेसू,
सारे दुःख दर्द समेटकर,
दे दूं मुस्कान झोली भर भर,
प्रेम से, प्यार से,
समर्पण और दुलार से,
हर जीवन में भर दूं खुशहाली,
हर दिन को बनाऊं एक नवीन रंगोली,
हर दुःख समेटकर आंचल में,
खो जाऊंगी इक पल में,इस अनंत नभ मे,
वादा है मेरा तुम सबसे,
हर जीवन बदलूंगी निष्ठा से ,
हर प्राण यहां है मेरा मान ,
मेरा विश्वास और आत्मसम्मान।

पृथ्वी को बेहतर बना जाऊंगी,
हर पीढ़ी को सक्षम कर जाऊंगी।।

क्यूंकि मैं हूं इस धरा की नारी,
ऊपरवाले की, अपनी संवारी,
प्रेम,प्यार से भरी हुई डारी,
जादू की हूं अजब पिटारी।।

-मधुमिता

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