Wednesday, 13 April 2016

खुशियों की सौगात



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बारिश की बौछारों का नर्तन,
पत्तों के सीने पर पानी की थिरकन,
खिड़की के शीशों पर बूंदों की सरगम,
हवा की ख़ुश्बू भी गीली सी और नम l

चहूं ओर सब धुला-धुला,
हर बाग़ बगीचा खिला-खिला,
आसमां भी लगे शुभ्र,नीला-नीला,
बूंदें खेलें अपना अपना पाला l

भीगे, गीले ,खिलखिलाते बच्चे,
बनाते पोख़र अपने हाथों से कच्चे,
पोख़रों में चली उनकी कागज़ की नाव,
गिरते पड़ते, आते जाते खुशियों के भाव l

दूर गगन में उड़ता चातक,
दो बूंदों के मद् में मादक,
फैलाए अपने पंख नाज़ुक,
दृश्य सारा सुंदर मोहक l

मन मोर भी मेरा नाच उठा,
उड़ जाने को मचल बैठा,
व्यस्क मन को दिया हटा ,
है अहसास सा इक मीठा-मीठा l

इक पंछी होती मैं काश,
विचरण करती सम्पूर्ण आकाश ,
बादलों को छूकर आती,
आकर फिर बच्चा बन जाती,
बारिश में फिर भीगती-भागती,
कागज़ की इक नाव तैराती,
उसके संग मंज़िल को जाती l

निश्छल सी कुछ खुशियाँ,
तलाशे मेरी अंखियां ,
बूंदें ये  नही महज़ सिर्फ बारिश की,
खुशियों की सौगात हैं ये,पूर्तियां कुछ ख्वाहिश की ll

- मधुमिता

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