Thursday, 14 April 2016

तुम्हारी  नपुंसकता



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नहीं   ये  तुम्हारी  इच्छा, मर्ज़ी  नहीं, 

ना  जोर  है  कोई ,

बल्कि  ये तो  गूँज  है

तुम्हारी  नपुंसकता  की ,

जो  सुनाई  दे   रही  है, 

दौड़ा  रही  है , भगा रही  है 

तुम्हे , मुझे  समझने   में  

असमर्थ बना  गयी  है  तुम्हे, 

एक  दीवार  खींच  ली 

है  तुमने , जो  लगातार  ताकती 

है, रोकती  है  मेरी  इच्छाओं   को, 

मेरे  उन जज्बातों  को, 

जो  सृजन  करना  चाहती  है 

नव जीवन  का , खुशियों  का 

माखौल  बनाते हुए,  हर  उस  जिद  का 

जो  जीवन  जीने  की थी ,

मेरी  इच्छा शक्ति  के  साथ  कदम  मिलाते, 

अपनों  को  सहेजते , सपनों  को  समेटते, 

अपने  पंखों  को फैलाने  की  कोशिश,  

और उड़ने  से  पहले, फिर  वही  गूँज 

गाज  गिरा  गयी  दिल  पर! 

तन  और  मन  को  लहुलुहान  करती,  

आँख  मूंदता  जीवन  और

ताकती  हुई  मेरूदंड  हीन 

तुम्हारी  नपुंसकता!!

मधुमिता 

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