Wednesday, 27 April 2016

बर्फ होते रिश्ते



पगला सा ये मन मेरा,
हो जाने को बैठा सिर्फ तेरा,
तुझमें ही रम जाना चाहे,
डगर कठिन हो कितनी भी चाहे।
तुझ संग ये चाहे उङना,
दुनिया में बेझिझक फिरना,
खुशियों से झोली भरना चाहे,
बाँहों में तेरी डाले बाँहें ।।

आँखें तुझ बिन खाली सी,
सपनों की एक जाली सी
इनमें,मानों मोतियाबिंद उतर आया हो,
रोशनी में भी गहरा अंधियारा छाया हो।
रंगीन सपने सम्भाले हुए, 
खुशफ़हमियाँ कुछ पाले हुए,
हठ पर ये उतर आईं हैं,
बंद होने को तैयार नही हैं।।

गरमाहट दो दिलों की मिलकर,
हर बर्फीले चट्टान को पिघलाकर,
इन आँखों में सतरंगी सपने सजायेंगे,
अपने अरमानों का जहां बसायेंगे।
ऐसे कुछ अरमान सजे थे,
कुछ ऐसे ख्वाहिश जागे थे,
धुंधली सी पर थी तस्वीर,
दग़ा दे गयी मेरी तकदीर ।। 

अब किस जहां को तलाशती हैं आँखें !
किस तपिश की चाह करता है दिल ?
बेरहम  सी  दुनिया  में ,
यूँ अहसासों की भूलभुलैय्या में।
अब तो इंतज़ार का दामन छोड़, 
खुशफहमी  के  धागे तोड़ ,
कि दिन हुए कुछ पूरे से,
घिरे हुए स्याह अंधियारे से।।

अधूरी सी है ज़िन्दगी,
अब तो वक्त है रुख़सती की,
पथराती  सी नज़रें,
थमतीं सी धङकनें,    
चरमराता यकीं,
सर्द होता बदन,
हसरतों और अरमानों की सलवटें 
और उनपर बर्फ  होते  से  रिश्ते !!

-मधुमिता

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