Friday, 8 April 2016


छोटी छोटी छतरियाँ , छोटे छोटे बस्ते




छोटी छोटी छतरियाँ , छोटे छोटे बस्ते
ब्रेक टाईम की लेमनचूस, छुट्टी पर मटरू के खस्ते,
बारिश के पानी में छपाछप,
धप्प से मां को डराना अचानक l
होमवर्क ना करने के सौ बहाने,
स्कूल ना जाने को रोने-रुलाने l
रात को जुगनुओं के पीछे भागना,
बोतल मे उन्हे बन्द कर एडिसन बन जाना l
तितलियों और फूलों के रंग मे रंग जाना,
पूरी दुनिया को ही अपना परिवार जानना l
बचपन के दिन थे कितने न्यारे
छोटी-छोटी  खुशियां और दोस्त प्यारे-प्यारे l
काश वक्त सारा, यूंही, वहीं थम जाता,
तो जग महकता,यूं रंज और नफरत ना होता,
अमन, सब्र और इंसान पनपता,
मासूम चेहरों से प्यार झलकता l
याद बहुत  आते  हैं बचपन के वो दिन
पाक, रोशन और रंगीन l
खेल जाती है होंठों पे इक मुस्कान
जब भी आता है, ऐ बचपन, तेरा ध्यान l
मिल जाए गर तू मुझे कभी भूले भटके,
जकड़ लूं तुझे, ले जाऊं कहीं दूर हटके,
फिर जीने वही मस्तीभरे लम्हें ,
साथ में वही छोटी-छोटी छतरियाँ,छोटे-छोटे बस्ते ll

-मधुमिता

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