छू लूं कैसे
झिनी सी रेशम की जाली सी,
मोह माया के इस महिन
झरोखे में से,मैं तितली सी,
निकलूं तो निकलूं कैसे!
अंधकार है,
तिमिर गहन है,
कुछ रंग बिखेरूं तो कैसे!
नाज़ुक से मेरे पंख फैलाकर,
आसमाओं को छू लूं ,तो कैसे!!
©®मधुमिता
-मधुमिता
मोह माया के इस महिन
झरोखे में से,मैं तितली सी,
निकलूं तो निकलूं कैसे!
अंधकार है,
तिमिर गहन है,
कुछ रंग बिखेरूं तो कैसे!
नाज़ुक से मेरे पंख फैलाकर,
आसमाओं को छू लूं ,तो कैसे!!
©®मधुमिता
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