Wednesday, 13 April 2016

कर ले दुनिया बंद अपनी मुट्ठी में

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क्यों  इस कदर ग़मगीन है तू , निश्तेज,अजान,
ना खुद की खबर,ना आसपास का भान,
ना खिलखिलाहट, ना मुस्कान,
निरस, बेबस,सुखी सी,बेजान l

एकटक खिड़की से यूं झांकते,
हर छाया, हर आकृति को आंकते,
किसकी है आस,कौनसी अधबुझी है प्यास!
पुरानी यादें अब छोड़,खोल मन के किवाड़,
कदम बढ़ाकर आगे,डग भरकर,
निकल बाहर, निकाल हर ग़ुबार!

नई खुशियों  को जान,
उन्हे अपना मान,
ले हक़ अपना ,हक़ से,
तू सशक्त है,  उन्मुक्त है,
अपने अंदर मत ज़लज़ला पालl
तोड़ हर रेशमी पाषान जाल,
निकल चल, निकल चल,
दूर जहां चमक रहा सुहाना कल l

इंतज़ार कर रही जहां खुशियां,हलचल,
तेरी मुस्कान, निश्छल हंसी कलकल l

किसी को क्या अधिकार ,तुझे,तुझ ही से छीनने का,
ये अधिकार है तेरा, तेरे अस्तित्व, तेरे जीने का l

चल जी ले अब, अब नही तो उड़ेगी कब !
छूकर सितारों को,बादलों की सैर कर अब,
निकल आ हर झूठ मूठ की गुत्थी से ,
चल कर ले दुनिया बंद ,अपनी ही मुट्ठी  में ll


-मधुमिता

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