Wednesday, 13 April 2016

मै  पागल

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हां तो क्या , जो हूं मै  पागल,
अहसासों से भरी अनर्गल,
गले लगा, सबको लिया अपना,
लोगों ने एक ही झटके में किया बेगाना l

हां माना कि हूं मैं पागल,
है मेरे पास निसस्वार्थ सा इक दिल,
लिए भरपूर प्यार  और अपनापन,
अपनाया जो भी जैसा मिला मय अवगुण l

समझा सबको अपना परिवार,
सहे अनवरत् वार पे वार,
अागे बढ़ थामे सबके हाथ,
पर बदले मे मिले घात पे घात l

मिले कितने छुपे  हुए दुश्मन,
दोस्ती के चिलमन
के पीछे, किया हर एकने अपने लाभ को इस्तमाल,
फिर मारा पीछे से नश्तर,किया खून,बिना गिराए खूं ,क्या कमाल !

फिर भी चलती चली जा रही हूं मैं इक बेवकूफ़
की तरह, चोटिल, ज़ख़्मी, राहगीर एक बेबाक पर मूक,
कोई कमी नही है  आशा की,
ज़रा भी जगह नही हताशा की,
जारी रहेगा मेरे जीवन का दंगल,
चाहे मुझे रोगी कहो, या कहो मुझे पागल l

खुश होलो, अगर खुशी मिलती है बोलो मुझे पागल,
चाहती रहूंगी  फिर भी तुम्हारा मंगल ,
गर्व है  मुझे, मै नही कुछ की तरह , तंगदिल,
हां तो क्या हुआ ,जो हूं मैं पागल !!!!

-मधुमिता

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