चलो वक्त का पहिया घुमायें
चलो वक्त का पहिया घुमायें,
कुछ बीते दिन फिर जी आयें।
जब सतरंगी से दिन थे होते
और चमकीली रातें,
जब तितली से हम फिरते रहते
और भंवरे से तुम गुनगुनाते।
जब बांहों में बांहें डालकर,
नज़रों से नज़रें मिलाकर ,
बैठे रहते घंटों भर यूं ,
समय की सुई थम गई हो ज्यूं।
कानों मे मेरे तुम्हारा कुछ कहना,
मेरे चेहरे पर सुर्खियां लाना,
शर्म से मेरा सिमट जाना,
तुम्हारे बाहुपाश का कस जाना।
वो छुप छुपकर मिलना मिलाना,
दुनिया की नजरों से छुपना,
छुपन छुपाई का था अनूठा खेल,
हर दिन, हरपल दो दिलों का मेल।
दो दिन की जुदाई भी ना सह पाना,
एक दूजे को खत लिखना,
करवटें बदल बदल रातें बिताना
और हारकर तुम्हारा मेरे घर के चक्कर काटना।
वो लाल गुलाब की भेंट तुम्हारी ,
अभी तलक है पन्नों में सम्भारी,
उसमें बसी खुश्बू तुम्हारी
और उसमे बसती ज़िन्दगी हमारी।
प्रेम प्यार से भरे दिल थे,
दो से एक बनने को व्याकुल थे,
ना कोई स्वार्थ, ना लांछन,
बस था कल्पनाओं का एक प्यारा आंगन।
अपनी दुनिया थी बङी ही निराली,
जहां महकती खुशियाँ डाली डाली ,
मिसरी सी थी हमारी बोली,
निश्छलता से भरी थी झोली।
एक दूजे में खोये हुए थे,
अंजानी राह में निकल पङे थे,
दुःख में, सुख में एक दूजे के साथ,
चल पङे थे हाथों में थामे हाथ।
चलते चलते ना जाने कब,
भूल गये वह बातें सब,
दुनियादारी में रह गये फंस,
अब जाकर होश आया है बस।
भूल गये थे वो कसमें वादे सारे,
मुद्दतें हुईं एक दूसरे को निहारे,
एक ही छत के नीचे अजनबी से हम,
ना जाने कब दो जिस्म,दो जान बन गये हम।
फिर पुराने दिन जीने को मन करता है,
तितली बन उङने को जी चाहता है ,
तुम्हारी बांहों में छुपने को मचलता है जिया,
तुमने भी तो ज़रूर, उन दिनों की कमी को, महसूस है किया।
तो चलो ना मिलकर वक्त का पहिया घुमायें,
रुमानी से कुछ बीते दिन फिर जी आयें।।
-मधुमिता
कुछ बीते दिन फिर जी आयें।
और चमकीली रातें,
जब तितली से हम फिरते रहते
और भंवरे से तुम गुनगुनाते।
नज़रों से नज़रें मिलाकर ,
बैठे रहते घंटों भर यूं ,
समय की सुई थम गई हो ज्यूं।
मेरे चेहरे पर सुर्खियां लाना,
शर्म से मेरा सिमट जाना,
तुम्हारे बाहुपाश का कस जाना।
दुनिया की नजरों से छुपना,
छुपन छुपाई का था अनूठा खेल,
हर दिन, हरपल दो दिलों का मेल।
एक दूजे को खत लिखना,
करवटें बदल बदल रातें बिताना
और हारकर तुम्हारा मेरे घर के चक्कर काटना।
अभी तलक है पन्नों में सम्भारी,
उसमें बसी खुश्बू तुम्हारी
और उसमे बसती ज़िन्दगी हमारी।
दो से एक बनने को व्याकुल थे,
ना कोई स्वार्थ, ना लांछन,
बस था कल्पनाओं का एक प्यारा आंगन।
जहां महकती खुशियाँ डाली डाली ,
मिसरी सी थी हमारी बोली,
निश्छलता से भरी थी झोली।
अंजानी राह में निकल पङे थे,
दुःख में, सुख में एक दूजे के साथ,
चल पङे थे हाथों में थामे हाथ।
भूल गये वह बातें सब,
दुनियादारी में रह गये फंस,
अब जाकर होश आया है बस।
मुद्दतें हुईं एक दूसरे को निहारे,
एक ही छत के नीचे अजनबी से हम,
ना जाने कब दो जिस्म,दो जान बन गये हम।
तितली बन उङने को जी चाहता है ,
तुम्हारी बांहों में छुपने को मचलता है जिया,
तुमने भी तो ज़रूर, उन दिनों की कमी को, महसूस है किया।
रुमानी से कुछ बीते दिन फिर जी आयें।।
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