मेरा मन
उड़ रही हूँ मै यहाँ ,वहाँ ,
सुक्ष्म सी , गहनता के
सागर में , गोते खाती,
टिमटिमाती शुन्यता को
भीतर भर , अपने होने
के रहस्य को खोजने
की कोशिश करती ,
उस अनंत ,अतल ,अदृश्य
को पाने की चाहत में,
सितारों तक ऊँचे पहुँच,
उनके बीच नर्तन करता ,
हवा के भंवर में,
चक्रवाती सा,पंख फैलाकर,
आज़ाद, मदमस्त हुआ जाता
ये मेरा मन , मेरा मन !!
-मधुमिता
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