Wednesday, 13 April 2016

सन्नाटा













सन्नाटा भी बोल रहा है यहां अब,
धुंधले से इस अद्भुत जग मे सब,
हवा कानों को सहला सी जाती,
कोंपलों का शोर थिरकन जगाती।।
 

पंछियों की चहचहाचट का संगीत,
झरनों के कलकल करती  उन्मुक्त गीत,
श्वेत सफ़ेद चादर में लिपटी पर्वत श्रृंखला,
मानों पावन सी, पवित्रता की मूर्तियाँ ।।
 

हर ओर रंगबिरंगे फ़ूलों के दर्शन,
इठलाती,बलखाती तितलियों का नर्तन,
सिहरा,सहला जाती है ठंडी सौम्य सी पवन,
हर एक रूह ,हर एक बदन।।
 

चुपके से कानों में बहुत कुछ बोल जाता ये सन्नाटा,
एक अजीब सी चाह जगा जाता ये सन्नाटा,
खुद में ही सब कुछ समेट कर ख़ामोश सा ये सन्नाटा,
मुझ से भी कसमसाकर लिपट ही गया देखो ये मीठा सा सन्नाटा ॥



-मधुमिता

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