Wednesday, 13 April 2016

मां

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आंकी बांकी लकीरों में छुपी
समय की अनगिनत लुकाछुपी
सी,दिखती ,तुम्हारी खुरदरी,मैली
सी ,कमज़ोर ,रूख़ी सी हथेली
में,छुपी कई सौ पहेली l

कोई छाला मेहनतकशी का,
कोई जला घाव गरम तवे का,
कुछ यादें तुम्हारी चपत की,
हाथों में हाथ लेकर सलाह मुफ़्त की,
क्या-क्या राज़ छुपाई हुई हैं तुम्हारी हथेली भी l

वो प्यार से कौर तोड़ हमें खिलाना,
बुख़ार में तपते माथे पे,रातभर ठंडी पट्टी रखना,
परीक्षा के समय उंगली में पेन्सिल पकड़ मुझे यूं पढ़ाना,
मानो, तुमको ही सारी परीक्षाएं थीं पास करना,
आज मेरा मान सम्मान सब तुम्हारी हथेली से ही तो है बना l

वो मीठी सी चाय तुम्हारे हाथों की,
वो खतरे की घंटी तुम्हारे हाथों की,
वो प्यार से सहलाना तुम्हारी हथेली का,
खींच-खींच कर मेरी चुटिया भी बनाना तुम्हारी हथेली का
काम,क्या मज़बूत थीं तुम्हारी हथेलियां l

क्या-क्या रचा बसा है तुम्हारी हथेलिओं में,
ऐ मेरी मां, कितने ही फ़साने बसे हैं तुम्हारी  हथेलियों में!
बनीं रहें मेरे सिर पे ,ये हथेलियां तुम्हारी हमेशा,
इनके साथ और दुवाओं की दरकार मुझे रहेगी सदा-सदा,हमेशा हमेशा ll


-मधुमिता

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