तुम
माना कि कुछ अजीब हो तुम,
फिर भी ना जाने क्यों
दिल के करीब हो तुम!
दिल की गहराइयों से चाहा था तुम्हे,
पर जाने क्यों फिर भी,
तुम ले आए हर वक्त दोराहे पर हमे!
दिल मेरा चाक चाक किया,
आंसुओं का मरहम लगा
हरपल तुम्हे हमेशा बेदाग़ रखा!
मेरे हर रास्ते को रोका तुमने,
कभी ना आगे बढ़ने दिया,पर
एक दूसरे का साथ देने का तो वादा किया था हमने!
ज़ुल्म सहे सारे तेरे,
ज़ुबां मेरी खामोश रही,
आंखें मेरी, आंसू पीते रहे मेरे।
पाकर भी ना पाया था कभी तुम्हे,
अकेली रही इस जहां में,
मेरे होकर भी क्यों तुम मेरे कभी ना रहे!
तो भी तस्ल्ली है मुझे,
क्योंकि एक ही छत है हमारी,
रात को ही सही,देख तो पाती थी तुझे।
तुम्हारा ना सही,तुम्हारे बच्चों का साथ था,
वरना कबकी मै पगला जाती,
मेरे लिए उनके पास वक्त ही वक्त था।
तुम आगे बढ़ते ही चले गये,
मै पीछे कहीं छूट गयी,
मेरी ज़िन्दगी से तुम मानो गुम से होते गये।
वजह बेवजह भी खूब तुम चिल्लाते ,
कभी झूठी तस्ल्ली देते तो कभी रुलाते,
यूंही कट गयी ज़िन्दगी कलपते कलपाते।
वैसे तुमने कभी मुझे यूंही सताया नही,
मेरी ज़रूरतों का ख़्याल भी रखा तुमने,
पर क्यों बताओ तुमने मुझे अपना समझा ही नही!
हर ज़िम्मेदारी तुम्हे बोझ लगती,
पर हरेक को उठाया तुमने,
कभी ये झुंझलाते,कभी ज़रा मुस्कुराहट दे जाती।
क्यों नही है तुम्हे भरोसा मुझपर?
गैरों पर कैसै ऐतबार करते हो?
जबकि मैने तो ज़िन्दगी ही वार दी है तुमपर।
किस बात ने बांध रखा है तुमको?
किन बातों से परेशान हो?
कभी तो बताओ मुझको!
तुम्हारे हर निर्णय मे तुम्हारे साथ रही खड़ी,
फिर भी तुम्हारी सफलता की सहभागी नही,
रह गयी मै बेवकूफ सी,कमज़ोर और डरी।
फिर वक्त का चक्र चला,
तुमपर भी उसने वार किया,
अपने पराये का तुम्हे तब शायद अहसास हुआ।
पर अब भी तुम नही मेरे अपने,
ना मै ना मेरे सपने,
कभी बन पाये तुम्हारे अपने।
क्यों तुम किसी के कभी ना बन पाये?
ना मां के,ना बहन के,ना मेरे!
देखो तुम बस एक नाम भर रह गये।
बहुत कुछ कर गये हो तुम,मानती हूं,
पर प्यार और सुकूं को तरसते हो,
अब, ये मै अच्छे से जानती हूं।
अब भी कुछ ना बिगड़ा है जानो,
मेरी बात अब तो तुम मानो,
कुछ सांझा करो अपने दर्द,
तोड़ो अपने सारे बंधन और हद,
निकलो हर बंधन से आगे,
इससे पहले कि जि़न्दगी तुमसे भागे,
ज़िन्दगी की राह मे अपने बहुत कम है,
खुशियाँ थोड़ी और बेशुमार ग़म है,
आओ दो कदम साथ चले,
अपनी ज़िन्दगी को लगालो गले,
आगे रस्ते खुलते जाएंगें,
हसीन सपने खिलते जाएंगें,
हर राह में खुशियां चलो बांटते,
थक जाओगे खुशियों को बटोरते बटोरते।
अपनी बनाई दुनिया से निकलो,
अपने सोचों से उबरो,
मै वहीं खड़ी हूं आज भी,
ज़रा नज़र उठाकर देख तो लो ॥
-मधुमिता
माना कि कुछ अजीब हो तुम,
फिर भी ना जाने क्यों
दिल के करीब हो तुम!
पर जाने क्यों फिर भी,
तुम ले आए हर वक्त दोराहे पर हमे!
आंसुओं का मरहम लगा
हरपल तुम्हे हमेशा बेदाग़ रखा!
कभी ना आगे बढ़ने दिया,पर
एक दूसरे का साथ देने का तो वादा किया था हमने!
ज़ुबां मेरी खामोश रही,
आंखें मेरी, आंसू पीते रहे मेरे।
अकेली रही इस जहां में,
मेरे होकर भी क्यों तुम मेरे कभी ना रहे!
क्योंकि एक ही छत है हमारी,
रात को ही सही,देख तो पाती थी तुझे।
वरना कबकी मै पगला जाती,
मेरे लिए उनके पास वक्त ही वक्त था।
मै पीछे कहीं छूट गयी,
मेरी ज़िन्दगी से तुम मानो गुम से होते गये।
कभी झूठी तस्ल्ली देते तो कभी रुलाते,
यूंही कट गयी ज़िन्दगी कलपते कलपाते।
मेरी ज़रूरतों का ख़्याल भी रखा तुमने,
पर क्यों बताओ तुमने मुझे अपना समझा ही नही!
पर हरेक को उठाया तुमने,
कभी ये झुंझलाते,कभी ज़रा मुस्कुराहट दे जाती।
गैरों पर कैसै ऐतबार करते हो?
जबकि मैने तो ज़िन्दगी ही वार दी है तुमपर।
किन बातों से परेशान हो?
कभी तो बताओ मुझको!
फिर भी तुम्हारी सफलता की सहभागी नही,
रह गयी मै बेवकूफ सी,कमज़ोर और डरी।
तुमपर भी उसने वार किया,
अपने पराये का तुम्हे तब शायद अहसास हुआ।
ना मै ना मेरे सपने,
कभी बन पाये तुम्हारे अपने।
ना मां के,ना बहन के,ना मेरे!
देखो तुम बस एक नाम भर रह गये।
पर प्यार और सुकूं को तरसते हो,
अब, ये मै अच्छे से जानती हूं।
मेरी बात अब तो तुम मानो,
कुछ सांझा करो अपने दर्द,
तोड़ो अपने सारे बंधन और हद,
निकलो हर बंधन से आगे,
इससे पहले कि जि़न्दगी तुमसे भागे,
ज़िन्दगी की राह मे अपने बहुत कम है,
खुशियाँ थोड़ी और बेशुमार ग़म है,
आओ दो कदम साथ चले,
अपनी ज़िन्दगी को लगालो गले,
आगे रस्ते खुलते जाएंगें,
हसीन सपने खिलते जाएंगें,
हर राह में खुशियां चलो बांटते,
थक जाओगे खुशियों को बटोरते बटोरते।
अपनी बनाई दुनिया से निकलो,
अपने सोचों से उबरो,
मै वहीं खड़ी हूं आज भी,
ज़रा नज़र उठाकर देख तो लो ॥
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