धोख़ा
हर कूचे,हर गली,हर मोड़ पर,
कब कहां से निकल आये
कौन सा धोख़ा अचानक,
किसी दरवाज़े,किसी फ़ाटक
से सर उठाकर,कौन जाने!
बेदर्द से, बिल्कुल अनजाने
से, हमीं को तोड़ जाएं,
ऐतबार लफ़्ज़ को मिटा जाए,
ताउम्र नासूर सा ज़ख़्म दे जाएl
बख़्शीश कर ऊपरवाले,
ऐ ख़ुदा बस ख़ैर करें ll
-मधुमिता
No comments:
Post a Comment