ज़िद्द
उफ्फ़ ये तुम्हारी ज़िद्द,
यूँ हठ करना
और आनाकानियाँ,
मुँह फुलाकर करना
बस मनमानियाँ ,
छोडो अब रूठना ,
बहुत हुआ कट्टी का खेल ,
जाने दो अब मान मनव्वल,
देखो अब मानो, क्यूँकि अब बिगड़( उलझ ) रही हूँ मै।
दिल चाहता है,
हलके से दो चपत लगाऊँ
सर के पीछे तुम्हारे ,
कान पकड़ फिर ले आऊँ
छोटे से जहाँ में हमारे,
चुप करके बैठो बस यहाँ ,
मत देखो तुम यहाँ वहाँ,
मुझे सुननी है तुम्हारी बातें,
तुम्हारे दिन और रात की बातेँ ,
सुनाओ सिर्फ मुझे ही तुम ,
मत बैठो यूँ गुम सुम।
सुनाओ सारे अपने किस्से,
तब फिर ले लूँगी मै अपने हिस्से,
सारे दुःख दर्द तुम्हारे,
सारा ज़हर , सारे आँसूं तुम्हारे,
चुप ना बैठो चलो ना कुछ बातें करें,
रंग बिरंगे अहसास कुछ साँझे करें ।
किसी और चीज़ की जगह
क्यूँकर हो बीच हमारे ,
गुंजाइश हो सिर्फ ज़िंदा अहसासों की,
बस हमारे और तुम्हारे ।।
उफ्फ़ ये तुम्हारी ज़िद्द,
यूँ हठ करना
और आनाकानियाँ,
मुँह फुलाकर करना
बस मनमानियाँ ,
छोडो अब रूठना ,
बहुत हुआ कट्टी का खेल ,
जाने दो अब मान मनव्वल,
देखो अब मानो, क्यूँकि अब बिगड़( उलझ ) रही हूँ मै।
दिल चाहता है,
हलके से दो चपत लगाऊँ
सर के पीछे तुम्हारे ,
कान पकड़ फिर ले आऊँ
छोटे से जहाँ में हमारे,
चुप करके बैठो बस यहाँ ,
मत देखो तुम यहाँ वहाँ,
मुझे सुननी है तुम्हारी बातें,
तुम्हारे दिन और रात की बातेँ ,
सुनाओ सिर्फ मुझे ही तुम ,
मत बैठो यूँ गुम सुम।
सुनाओ सारे अपने किस्से,
तब फिर ले लूँगी मै अपने हिस्से,
सारे दुःख दर्द तुम्हारे,
सारा ज़हर , सारे आँसूं तुम्हारे,
चुप ना बैठो चलो ना कुछ बातें करें,
रंग बिरंगे अहसास कुछ साँझे करें ।
किसी और चीज़ की जगह
क्यूँकर हो बीच हमारे ,
गुंजाइश हो सिर्फ ज़िंदा अहसासों की,
बस हमारे और तुम्हारे ।।
-मधुमिता
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