Thursday, 14 April 2016

 ज़िद्द







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उफ्फ़  ये तुम्हारी  ज़िद्द, 
यूँ  हठ  करना 
और  आनाकानियाँ, 
मुँह   फुलाकर  करना 
बस  मनमानियाँ ,
छोडो   अब  रूठना ,
बहुत   हुआ  कट्टी  का खेल ,
जाने  दो  अब  मान   मनव्वल,
देखो  अब मानो, क्यूँकि   अब  बिगड़( उलझ ) रही हूँ मै।  
दिल  चाहता  है,
हलके  से  दो  चपत  लगाऊँ
सर   के पीछे   तुम्हारे ,
कान  पकड़  फिर  ले  आऊँ
  छोटे  से  जहाँ  में  हमारे, 
चुप करके  बैठो   बस  यहाँ ,
मत  देखो  तुम यहाँ  वहाँ, 
मुझे  सुननी  है  तुम्हारी  बातें,
तुम्हारे  दिन  और  रात  की बातेँ ,
सुनाओ  सिर्फ  मुझे  ही  तुम ,
मत  बैठो  यूँ  गुम सुम।
सुनाओ  सारे  अपने  किस्से,
तब  फिर ले  लूँगी  मै  अपने  हिस्से,
सारे दुःख  दर्द  तुम्हारे,
सारा  ज़हर , सारे आँसूं  तुम्हारे, 
चुप  ना बैठो  चलो ना  कुछ   बातें करें, 
रंग बिरंगे  अहसास  कुछ  साँझे  करें ।
किसी   और  चीज़  की जगह
  क्यूँकर  हो  बीच  हमारे ,
गुंजाइश  हो सिर्फ  ज़िंदा  अहसासों की, 
बस  हमारे और तुम्हारे ।।


-मधुमिता 

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