shabdaamrit शब्दामृत-मधुमिता
Wednesday, 13 April 2016
शोर
शीशे के उस ओर
जल का ये कैसा शोर!
थल भी है जलमग्न ,
प्यासी धरती की बुझ गयी अगन l
बादल खेलें अठखेलियां ,
वृक्ष तरु सब हमजोलियां ,
छूने को अातुर ये मस्त मौला मन ,
हर पल रंग बदलता,नटखट सा ये गगन ll
-मधुमिता
( यूं ही चलते चलते)
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