कहाँ हूँ मै , देखो तो ज़रा
ख़ामोशी मुझे आवाज़ देती है ,
चिल्लाकर रुकने को कहती है ,
ढूढ़ना है कुछ उसे ,
वक़्त की गर्दी के तले ।
कुरेदना है उसे, मेरे दिल को,
हर दर और दीवार, हर गली
हर कुचे को , हर उस
चीज़ को जो दफ्न हो गयी
है ज़िन्दगी के गुबार में,
जा चुकी है हमेशा हमेशा
के लिए , मेरी हंसी
जो रो रहीं हैं ,
मेरी साँसे जो
मर चुकी है ,
दिल जो दम
तोड़ चुका है,
कहाँ ढूँढ़ पाओगे
उस हंसी को ?
जो होंठों पे खेली नहीं !
उन शब्दों को जो मै कभी बोली नहीं ।
बाकी तो अब कुछ भी ना रहा है ,
ऐसा क्या खोजते हो जो नया है ,
कहाँ हूँ मै , देखो तो ज़रा ,
अब ना मिल पाऊंगी, मुड़
के देखो या , दो यूँही आवाज़ ,
कब्रों की खामोशी है ,
और बस है धूल और गुबार ।।
-मधुमिता
समर्पित है उन सभी लड़कियों को जो या तो गर्भ में या पैदा होने के बाद , या फिर परिवार के इज्ज़त के नाम पर चिर निद्रा में सुला दीं जाती हैं
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