Tuesday, 12 April 2016

कहाँ   हूँ  मै , देखो  तो  ज़रा

ख़ामोशी  मुझे आवाज़  देती है ,
चिल्लाकर  रुकने  को कहती  है ,
ढूढ़ना   है  कुछ  उसे ,
वक़्त  की  गर्दी  के  तले ।
कुरेदना  है  उसे, मेरे  दिल  को,
हर  दर  और  दीवार, हर  गली
हर  कुचे  को , हर उस
चीज़  को जो दफ्न   हो   गयी
है ज़िन्दगी  के  गुबार में,
जा  चुकी  है  हमेशा  हमेशा
के  लिए , मेरी  हंसी
जो  रो  रहीं  हैं ,
मेरी  साँसे  जो
मर  चुकी  है ,
दिल  जो   दम 
तोड़  चुका  है,
कहाँ   ढूँढ़  पाओगे 
उस  हंसी  को ?   
जो  होंठों  पे  खेली  नहीं !
उन  शब्दों को  जो मै कभी  बोली  नहीं ।
बाकी  तो  अब कुछ  भी  ना   रहा  है ,
ऐसा  क्या  खोजते हो  जो  नया  है ,
कहाँ   हूँ  मै , देखो  तो  ज़रा ,
अब  ना   मिल  पाऊंगी, मुड़
के  देखो  या , दो  यूँही  आवाज़ ,
कब्रों  की खामोशी  है ,
और  बस  है  धूल और गुबार   ।।

-मधुमिता

समर्पित  है  उन  सभी  लड़कियों  को  जो  या  तो  गर्भ  में  या  पैदा  होने के  बाद , या  फिर  परिवार  के  इज्ज़त  के  नाम  पर   चिर निद्रा  में  सुला  दीं  जाती  हैं

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