तदबीर के ताने बाने
तदबीर के ताने बाने कैसे यूंही
हथेली की लकीरों से मिल जाए कहीं,
कभी उल्टे को सीधा,कभी सीधे को उल्टा,
मानो वक्त ने पन्नों को पल्टा l
उथल पुथल सी कभी मचा जाए,
कभी जीवन बंजर सपाट सी बनाए,
कभी खुशियों के इनाम,
कभी उदासी भरे दिन,रातें गुमनाम l
क्यों नही सब होते एक समान?
क्यों कोई ईमानदार, तो कोई है बेईमान !
कोई सीता,कोई द्रौपदी,कोई कृष्ण है ,
तो क्यों कोई राधा,कोई उर्मिला और कोई रावण है?
शायद ही कोई कर पाए इसका अवलोकन,
ना ही कोई शाष्त्रार्थ,ना विश्लेषण l
हाथों की उल्टी सीधी लकीरें मिटाने की कोई तरकीब तो होगी, है यकीं,
तकदीरें एकसी कैसे बनाई जाती हैं, कोई बताए तो सही!!
-मधुमिता
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