Thursday, 14 April 2016


हम



हरे  दूब  की  चादर 

सी  फैली  खामोशी,

मखमली  अँधेरे  को 

समेटे  गीली  सी  रोशनी ,

यूँ रूह  को  भिगो  जाती ।


रंगीन  से  जज़्बात ,

नजाकत  भरे  पल ,

सर्द  गुलाबी  मौसम  

और तितली  सा  

हुआ जाता ये  मन।


सूखे हुये ये होंठ,

कांपते हुये से बोल,

सुर्ख़ से मेरे अहसास 

और इश्क से सराबोर, 

भीगा सा मेरा अन्तर्मन ।


सितारों की चमक

स्याह दुशाले से आसमाँ

को,दुल्हन सा चमकाता,

और मेरे दिल के एक कोने में,

हल्के से टिमटिमाता प्यार का दिया।


रेशमी से इस उजाले में

पास आते दो दिल हमारे,

आपस में उलझी उंगलियाँ,

थामती हुई गर्म साँसों की डोर

और उन साँसों की लहरों में डूबते हम।


धौंकनी सी चलती साँसें,

अंगारों से दहकते अहसास, 

जलते हुए से दो जिस्म

सिमटते हुये,सर्द से माहौल में,

एक दूसरे में पिघलते हम।।


-मधुमिता 


No comments:

Post a Comment