तू रो ले ज़रा
ये दिल कह रहा है
मुझे,तू रो ले ज़रा,
ग़मों को कुछ,धुल
जाने दे ज़रा ।
आंखों ने कमबख़्त
मानो पुश्ते बना लिए,
आंसुओं को ख़ुद मे
ही जज़्ब किए हुए।
खन्जर से ये आ़सूं
नश्तर से दिल में चुभाते,
धीमे-धीमे,यूं ही
एक नासूर सा बनते जाते।
ऐ नज़र! ज़रा पलक
तो कभी झपक,
कुछ बूंदों को
ज़रा जाने दे बरस।
क्यूं ये आंसूं हैं कि बरसते नही,
ग़म हैं जो थमाए थमते नही,
दर्द यूं जो वक्त, बेवक्त बहते रहें,
सुकूं को क्या हम, यूं ही, तरसते रहें!!
-मधुमिता
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